बुधवार, 16 अप्रैल 2014

प्रियंका ने किसी के कहने पर वरुण पर बोला हमला

प्रियंका गांधी और वरुण गांधी में बीते दिनों जो जुबानी जंग हुई,उसकी शुरुआत बेशक प्रियंका ने की, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें (प्रियंका को) किसी ने मजबूर किया था। वह शख्स कौन है जिनसे सोनिया परिवार डरता है। हालांकि यह डर भी सोनिया परिवार की प्रतिष्ठा से ही जुड़ा हुआ है। परिवार को डर है कि उस शख्स के विरोध की वजह से राहुल गांधी कहीं चुनाव हार न जाएं। कौन हैं वह वह शख्स हैं अमेठी के मानद राजा और अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस की तरफ से असम में राज्यसभा भेजे गए डॉ.संजय सिंह। कांग्रेस ने अमेठी से संभावित हार के खतरे को देखते हुए ही राजा साहब को असम से राज्यसभा भेजा। जबकि वह सुल्तानपुर से कांग्रेस के टिकट पर पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे और इस बार भी उन्हें टिकट मिलना ही था। लेकिन राजा साहब यह भांप गए कि अगर सुल्तानपुर से भाजपा के टिकट पर वरुण गांधी लड़ेंगे तो उनकी हार सुनिश्चत है। सो उन्होंने अपने समर्थकों की अमेठी में एक मीटिंग बुलाई। कांग्रेस की कमियां गिनाईं। अपने विश्वस्त सूत्रों को बताया कि वह राहुल के खिलाफ अमेठी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। सबने हामी भर दी। राजा साहब की मीटिंग की चर्चा अखबारों में हुआ। वह भाजपा के टिकट पर राहुल को चुनौती देंगे। साथ में यह भी कि भाजपा ने उन्हें टिकट देने के लिए भी हामी भर दी है, पर राजा साहब चाहते हैं कि हारने पर उन्हें भाजपा राज्यसभा भेजे। सोनिया परिवार तक यह खबर पहुंची तो परिवार भयाक्रांत हो गया। कहीं राजा साहब जीत गए तो राहुल का सियासी करियर ही खत्म हो जाएगा। परिवार का डर भी लाजिमी था क्योंकि राजा साहब 98 के लोकसभा चुनाव में परिवार के खासमखास कैप्टन सतीश शर्मा को अमेठी से मात दे चुके थे। 99 में सोनिया से हारने के बाद भी काफी दिनों तक भाजपा में रहे फिर कांग्रेस में चले गए। पिछले लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर से टिकट मांगा। बीते कई चुनावों से सुल्तानपुर सीट पर चौथे नंबर पर आ रही कांग्रेस के पास कोई गंभीर दावेदार भी नहीं था। हालांकि कांग्रेस नेताओं के एक बड़े वर्ग ने इसका विरोध किया। लेकिन उनके पुराने कांग्रेसी मित्रों ने परिवार से यह कहकर टिकट दिला दिया कि सुल्तानपुर की सीट तो वैसे ही अपने पास नहीं आनी है। सो शहीद होने के लिए राजा साहब कौन बुरे हैं। और अगर किसी तरह जीत भी गए तो कांग्रेस के खाते में एक सीट बढ़ ही जाएगी। परिवार ने राजा साहब को टिकट दे दिया। गजब यह हुआ कि राजा साहब जीत गए। बड़े अंतर से जीत गए। परिवार चौक गया। उसे लगा कि सुल्तानपुर अमेठी में वाकई राजा साहब का जनाधार है। आगे अगली पोस्ट में

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

एक नेता होना जरूरी है


चुनाव का समय है। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए नामित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में भाजपा ही नहीं बल्कि लाखों ऐसे लोग भी उतर आए हैं। जिन्होंने कभी भाजपा को वोट नहीं दिया था। वे कहते भी हैं कि भाजपा को केवल वोट इसलिए देंगे क्योंकि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पहली पसंद मोदी हैं। मोदी के आलोचक बार बार इस मुद्दे को उठाते हुए कहते हैं कि किसी व्यक्ति का पार्टी से बड़ा हो जाना खतरनाक है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा को आगाह करने वाले उसके ये शुभेच्छु हमेशा से भाजपा विरोधी रहे हैं। हां कुछ ऐसे हैं जो अभी तक पार्टी में थे पर अब पार्टी छोड़ चुके हैं। लेकिन उनको पार्टी की चिंता इसलिए सताने लगी है कि उन्हें पसंदीदा जगह से टिकट नहीं मिला। तमाम मोदी विरोधियों को यह कष्ट है कि उनके इतने हमलों के बावजूद मोदी दिनोंदिन लोकप्रिय क्यों होते जा रहे हैं। शायद हमलावरों को मालूम नहीं कि इसका सबसे बड़ा कारण वे खुद हैं। अपने हमलों से वे मोदी को लोकप्रिय बना रहे हैं। उनका प्रचार कर रहे हैं। मोदी कैसे प्रधानमंत्री साबित होंगे। यह भविष्य बताएगा। लेकिन लगातार तीन चुनाव जीतकर वह यह साबित कर चुके हैं कि वह अच्छे मुख्यमंत्री हैं और उनके पास विजन है। दरअसल, मोदी को आगे लाना भाजपा की मजबूरी थी। हालांकि भाजपा के दो और मुख्यमंत्रियों शिवराज चौहान और रमन सिंह का प्रदर्शन भी कमतर नहीं है। यह भी हो सकता था कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ती और प्रधानमंत्री पद पर चयन जीते हुए सांसद करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और अगर होता तो मेरी इस बात को रेखांकित कर लें कि भाजपा सत्ता में आना तो दूर शायद मुख्य विपक्षी दल भी न बन पाती। बगैर नेता घोषित हुए कोई भी फौज जीत नहीं हासिल कर सकती। नेता तो जरूरी है। कैसा भी हो। उसमें अच्छाइयां होंगी। कुछ बुराइयां भी होंगी। लेकिन नेता होना जरूरी है। आप पूरी दुनिया में देख लें। अमेरिका में नेता पहले घोषित हो जाता है। अमेरिका ही क्यों हर देश की राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी नेता के नेतृत्व में ही मैदान में उतरती हैं। देश में देख लें वही पार्टियां सफल हैं जिनका कोई एक घोषित नेता है। सोनिया,मुलायम सिंह, ममता, बादल, जयललिता, मायावती, आदि आदि। वामपंथ का आधार सिकुड़ते जाने का कारण उसका सामूहिक नेतृत्व ही है। त्रिपुरा जहां उनकी सरकार है वह माणिक सरकार के कारण है। पश्चिम बंगाल में जो कुछ था ज्योति बसु की वजह से था जो उनके हटने के बाद खत्म हो गया और बंगाल में ममता आ गईं। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि किसी भी पार्टी का कितना भी मजबूत संगठन क्यों न हो। एक नेता होना अनिवार्य। एक नेता। कई नहीं। कई हों लेकिन उस नेता का नेतृत्व स्वीकार करने वाले।