सोमवार, 29 सितंबर 2025

बीड़ी से जल रही आग में झुलस सकते हैं कांग्रेस-राजद के अरमान

केरल कांग्रेस द्वारा बिहारियों की तुलना बीड़ी से किए जाने के बाद बिहारियों के जिगर में जो लपटें उठ रही हैं, उसने विधानसभा चुनावों की तपिश को चरम पर पहुंचा दिया है। बिहारियों के जिगर की इस आग से बीड़ी जले न जले कांग्रेस -राजद सहित यूपीए के अन्य दलों के अरमान जरूर झुलस सकते हैं। दूसरी तरफ एनडीए में शामिल दल और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की कांग्रेस द्वारा जला दिए गए इस अलाव में मुदित होकर हाथ सेंक रहे हैं। प्रशांत किशोर ने जब जन सुराज यात्रा शुरू की तो बिहार में उनकी चर्चा जरूर थी लेकिन देश की मीडिया उन्हें गंभीरता से नहीं ले रही थी। वह बिहार के गांव-गलियों में खाकसार बन खाक छान रहे थे तो राजद-कांग्रेस सहित एनडीए में शामिल अन्य दलों को लगता था प्रशांत भले ही कुशल चुनावी रणनीतिकार हों, विधानसभा चुनावों में उनके हिस्से में खाक ही आएगी। अब स्थितियां बदलती जा रही हैं। आगे और भी बदल सकती हैं। क्या पता न जाने कब कांग्रेस बीड़ी का कोई नया वर्जन ला दे या राहुल-तेजस्वी बिहार के बजट से भी अधिक राशि की घोषणा कर लंतरानी का अपना ही रिकार्ड तोड़ दें। प्रशांत अब किशोर नहीं रहे। प्रौढ़ तो वह भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल सहित अनेक दलों के रणनीतिक कमांडर के रूप में काम कर पहले ही चुके थे, अब चुनावी राजनीति में पारंगत होने की प्रक्रिया में हैं। बिहार के लोग कहने लगे हैं कि वह सरकार भले ही न बना सकें, नेता प्रतिपक्ष भले ही न बन सकें पर बिहार विधानसभा में कुछ न कुछ जनसुराजियों की एंट्री तो करा ही देंगे और तीसरी ताकत के रूप में नजर आएंगे। राजनीतिक विश्लेषक इस बात का आकलन करने लगे हैं कि उनकी जन सुराज पार्टी नुकसान किसका अधिक करेगी? राजद-कांग्रेस नीत गठबंधन यानी यूपीए का या भाजपा-जद यू नीत गठबंधन यानी एनडीए का। फिलहाल तो राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि प्रशांत दोनों का बराबर नुकसान करेंगे। वह जितना अधिक राजद के सुप्रीमो लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव पर फोकस करेंगे, जद यू और भाजपा का प्रकारांतर से उतना अधिक फायदा होगा। बिहार के लोग लालू के शासन काल को भूले नहीं हैं। बिहारवासियों के जख्मों को कुरेदने के लिए एनडीए नेता तो मुखर हैं ही प्रशांत भी तेजस्वी को लपेट रहे हैं। ऐसा नहीं कि प्रशांत किशोर एनडीए के प्रति कोई साफ्ट कार्नर रख रहे हैं लेकिन समस्या यह है बिहार में भाजपा का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो मुख्यमंत्री का चेहरा हो, वह हमला करें तो किस पर करें। एनडीए चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा। सो, भाजपा की तरफ से कोई सीएम फेस नहीं। वैसे भी भाजपा की रणनीति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की रहती है। बहुमत मिलने पर वह मुख्यमंत्री के रूप में ऐसा चेहरा ला देती है जो कहीं पिक्चर में ही नहीं होता। प्रशांत के लिए नीतीश कुमार ही बचते हैं। प्रशांत समझते हैं कि नीतीश के थके थके से चेहरे के विकल्प के रूप में बिहार के मतदाता कोई उर्जावान चेहरा चाहते हैं। वह तेजस्वी हो सकते हैं। इसलिए उनका फोकस तेजस्वी पर है। नीतीश विरोध में वह केवल उतनी ही ऊर्जा व्यय कर रहे हैं, जितना विरोध के लिए जरूरी है। निश्चित रूप से उन्हें यह जानकारी होगी कि बिहार के जातीय समीकरण में सवर्ण मतदाताओं की पहली पसंद भाजपा है। लेकिन सवर्ण उससे क्षुब्ध रहते हैं। कारण यह कि भाजपा उनके बजाय ओबीसी को वरीयता देती है। फिर भी सवर्णों की पहली पसंद भाजपा है, क्योंकि लालू का नारा- भूरा साफ करो- उन्हें आज भी सालता है। भूरा बाल यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला। प्रशांत भूरा बाल वर्ग वाले ही हैं। वैसे तो बिहार में सब जानते हैं लेकिन राजद वाले उनका सरनेम पांडे उजागर कर रहे हैं, इस अपेक्षा में कि पिछड़े सवर्णों के विरोध में लामबंद होकर राजद के पक्ष में जाएंगे। क्रिया के बाद प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। भूरा बाल यदि लामबंद होकर प्रशांत के साथ गया तो यूपीए के सवर्ण मतों में डेंट लगेगा। इससे एनडीए को भी तगड़ा नुकसान हो सकता है। वैसे यूपीए को जितना नुकसान प्रशांत किशोर कर रहे हैं उससे बहुत ज्यादा नुकसान अशांत कांग्रेसी ही कर दे रहे हैं, जैसे केरल कांग्रेस का बीड़ी से बिहारियों की तुलना वाला ट्वीट। सो, लगता है कि प्रशांत सर्वाधिक नुकसान यूपीए का ही करेंगे। बिहार के जातीय समीकरण को देखते हुए कहा जा सकता है कि यूपीए का भी इतना नुकसान तो कर ही देंगे वह अपने दम पर बहुमत न ला सके। ऐसी स्थिति में प्रशांत जन सुराज के लिए लोक की जनशक्ति से पासवान का चिराग लेकर सत्ता का रास्ता भी तलाश सकते हैं। यद्यपि यह दूर की कौड़ी है लेकिन है।