गुरुवार, 26 सितंबर 2013
इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
विश्व में दो प्रकार के धर्म हैं-एक इंडो वैदिक दूसरे सेमेटिक। इंडो वैदिक धर्म जिसे भारत में सनातन धर्म कहा जाता है उपजे पंथ हैं-शैव, वैष्णव,जैन, बौद्ध, सिख,आदि
सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ हैं,यहूदी, ईसाई, इस्लाम आदि
सबसे पहले इंडो वैदिक धर्म के बारे में
मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। (मनुस्मृति ६.९२)
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं ।
याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम् ।।
(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति )
श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं :
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।।
महाभारत के महान् यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं -
इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान् बन जाता है।
धर्म के इऩ लक्षणों से स्पष्ट है कि समाज के लिए जो कल्याणकारी है वही धर्म है। वास्तव में धर्म प्राचीनकाल में संविधान का पर्यायवाची हुआ करता था। आज जिस प्रकार संविधान का उल्लंघन करने पर व्यक्ति कानून द्वारा दंडित किया जाता है उसी तरह प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था में धर्म विपरीत आचरण करने पर समाज द्वारा दंडित किया जाता था। उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता था। इससे एक बात स्पष्ट है कि धर्म का उपास्य,उपासना पद्धति से कोई संबंध नहीं है। इंडो वैदिक धर्म मानता है कि ईश्वर एक है। लेकिन एकेश्वरवादी होने के बावजूद आप किसी भी रूप में उसकी उपासना कर सकते हैं। शिव के रूप में विष्णु के रूप में हनुमान के रूप में या मां दुर्गा या फिर अन्य देवी देवताओं के रूप में। लेकिन धर्म परायण होने के नाते आप दूसरे के उपास्य की निंदा नहीं कर सकते। गाली नहीं दे सकते। इसीलिए हनुमान भक्त भी शिव मंदिर से गुजरता है तो सिर झुका लेता है। वह मुस्लिम संत साईं बाबा की उपासना करता है। अजमेर शरीफ की भी और वैष्णों देवी की भी। कभी इस बात पर संघर्ष नहीं होता कि तुम्हारा उपास्य गलत है। वह तो चर्च को भी प्रणाम कर लेता है और मस्जिद को भी। इंडो वैदिक धर्म कि विशेषता है कि वह अपने पंथों में और पंथों को जोड़ने से परहेज नहीं करता। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय तो ईसाई हिंदू और मोहम्मदी हिंदू की परिकल्पना भी करते थे।
दूसरी तरफ सेमेटिक धर्म के पंथ भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं। मतलब एकेश्वरवाद दोनों में कॉमन है। संघर्ष का कारण अगला चरण है। सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ एकेश्वरवाद के साथ ही एकोपास्यवाद में भरोसा रखता हैं। दूसरे का उपास्य और उपासना पद्धति उन्हें स्वीकार नहीं। उसके प्रति वे असहिष्णु हैं। ईसाई पंथ के रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट पंथों में टकराव, इस्लाम में शिया सुन्नी टकराव इसी का कारण है। और अगर आपको बुरा न लगे तो कह दूं कि विश्व भर में आतंक का कारण भी सेमेटिक धर्म से उपजे पंथों की एकोपास्यवाद की सोच ही है।
दूसरी तरफ इंडोवैदिक धर्म एकेश्वरवादी होते हुए भी बहुउपास्यवादी हैं। इसलिए उनमें टकराव नहीं होता क्योंकि उनका मूल धर्म उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। क्यों उसके लक्षणों में धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ;शामिल हैं। उसका मानना है कि ईश्वर कण कण में है तो शिव जी की मूर्ति में भी है। हनुमान जी की मूर्ति में भी, गुरुद्वारे में है तो मंदिर में भी और चर्च में है तो मस्जिद में भी. इसीलिए इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
रविवार, 15 सितंबर 2013
तो एपी सिंह ने गलत क्या कहा
हम भारतीयों में तमाम अच्छाइय़ां हैं. लेकिन दो चीजे ऐसी हैं, जो हमारी तमाम अच्छाइयों पर मेरिट पर भारी पड़ जाती हैं। पहली हम पाखंडी हैं। दूसरी हम स्वार्थी हैं। पाखंड और स्वार्थ हममें कूट कूट कर भरा हुआ है. दिल्ली रेपकेस के दोषियों को फांसी की सजा हुई. नहीं होनी चाहिए थी.उन्होंने रेप किया था. रेप के लिए आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी। जिस हरामजादे ने उसके शरीर में सरिया डालते हुए कहा-ले साली मर और बस से बाहर फेंका फांसी उसे होनी चाहिए थी. जिसे तीन साल की सजा दी गई. क्योंकि उसके स्कूल के कक्षा चार तक रिकॉर्ड के मुताबिक उस दिन तक उसके बालिग होने में तीन महीने बाकी थे। स्कूल का सर्टिफिकेट सही था या नहीं इसके लिए उसकी मेडिकल जांच भी नहीं कराई गई। नवीनतम चिकित्सा तकनीकों से पता चल सकता है कि वह बालिग था या नहीं. लेकिन अदालत ने ऐसा नहीं किया. क्यों. उसे नाबालिग मान लिया. सीधी सी बात है जो व्यक्ति बलात्कार कर सकता हो वीभत्स तरीके से हत्या कर सकता हो. वह नाबालिग कैसे हो सकते है. इस फैसले के खिलाफ कोई हंगामा नहीं हुआ. और तो और अब वह बालिग हो चुका है इसलिए सुधार गृह में भी नहीं रखा जाएगा. उसे घर पर कैद रखा जाएगा. इसपर कोई बहस नहीं हुई. इसके खिलाफ आवाज उठाई डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने। लेकिन जब दो आरोपियों के वकील ने जज के फैसले पर प्रतिक्रिया कि आपने मीडिया और राजनीति के दबाव में फांसी का फैसला दिया है तो हंगामा हो गया. वकील एपी सिंह को सब गालियां देने लगें। बुरा बताने लगे.क्यों. मैं यह नहीं कहता कि यह फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया. लेकिन यह दावे के साथ कहता हूं कि सबसे वीभत्स अपराधी का फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया। आप सोचें. देश का सेनानायक अपनी जन्मतिथि के प्रमाण में हाईस्कूल का सर्टिफिकेट पेश करता है तो उसे अदालत नहीं मानती। एक बलात्कारी और हत्यारे के कक्षा चार की जन्मतिथि मान लेती है। हद है। यह न्याय नहीं पाखंड है। न्याय तो यहां खंड खंड है।
अब अगली बात एपी सिंह ने कहा कि मैं अपनी बेटी को विवाह से पहले रात रात भर घर से बाहर ब्यावफ्रेंड के साथ घूमने की इजाजत नहीं दूंगा। देह संबंध बनाने की इजाजत नहीं दूंगा और ऐसा करेगी तो उसे जिंदा जला दूंगा। उन्होंने जिंदा जलाने की बात गलत कही। क्रोध में कही। यह भी देखा जाना चाहिए. लेकिन सब पिल पड़े उनपर. जो उन्हें गरिया रहे हैं. दरअसल, वे सब पाखंडी हैं. अगर नहीं तो कहें कि मैं अपनी बेटी को विवाह पूर्व देह संबंध बनाने की इजाजत दूंगा. और अगर उसका ब्वायफ्रेंड कन्डोम का इस्तेमाल भूल गया या वह आईपिल समय पर नहीं ले पाई तो उसके बच्चे का नाना बाखुशी बनूंगा। अब तक तो किसी ने ऐसा नहीं कहा.कोई कहेगा भी नहीं.अगर कोई युवक या युवती यह कहता है कि वे सिर्फ दोस्त हैं तो वे झूठ बोलते हैं। दोस्ती का कोई रिश्ता नहीं होता। जब दो पुरुष दोस्त होते हैं तो उनके बीच भाई का रिश्ता होता है। वे एक दूसरे के बच्चों के उम्र के मुताबिक चाचा ताऊ होते हैं। भाई में और भाई रूपी दोस्त में सिर्फ एक फर्क होता है। हम अपने से बड़े भाई के साथ बहुत सारी बातें नहीं सांझा करते हें। लेकिन दोस्त रूपी भाई के साथ हर बात साझा कर लेते हैं। घर की दफ्तर की बिस्तर की। इसलिए दोस्ती का रिश्ते भाई के रिश्ते से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यही बात स्त्रियों में है। वे अपनी सहेली रूपी बहन से हर बात साझा कर लेती हैं, जो बड़ी या छोटी बहन से नहीं कर सकतीं। सो दुनिया में किसी सत्री और पुरुष का रिश्ता दोस्त का नहीं हो सकता। भाई बहन, बाप बेटी, बेटा मां या पति पत्नी/प्रेयसी का ही हो सकता है। सो ब्वायफ्रेंड केवल और केवल प्रेमी होते हैं। जिनके कई होते हैं ब्वाय फ्रेंड या गर्लफ्रेंड होते हैं वे प्रेमी प्रेमिका भी नहीं होते। सिर्फ और सिर्फ विपरीत लिंग के आकर्षण में बिंधे ऐसे युवक युवती होते हैं जो एक दूसरे की देह को ब्रेल लिपि में पढ़ने का आनंद लेने के लिए जुड़े होते हैं। अगर आप कुंवारे/कुंवारी हैं और आप को कोई युवक/युवती पसंद है तो उससे प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन विवाह से पहले देह संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं लेकिन यह तय हो कि विवाह होगा ही। हालांकि बेहतर यही होगा कि विवाह पूर्व इससे बचा जाए। अपने प्रगतिशील मानने वाली कितनी युवतियां शादी के बाद अपने पति से स्वीकार कर सकती हैं कि उनके कई लोगों से देह संबंध रहे हैं। कोई नहीं तब सब पाखंड करती हैं कि आप मेरी जिंदगी में आऩे वाले पहले पुरुष हो या पहली महिला। हां कुछ तथाकथित हाई सोसायटी वाले लोगों की बात दूसरी है। मसलन भाजपा की हेमामालिनी की और वामपंथी शबाना आजमी जैसे इसके कई उदाहरण हैं, जिन्होंने नारी स्वतंत्रता की वकालत करते हुए अपने पतियों की पूर्व पत्नियों के हक पर डाका डाला। स्मृति ईरानी ने तो अपनी सहेली के पति को छीन लिया। अब ऐसे लोग नारी स्वतंत्रता की वकालत करें तो वह पाखंड नहीं तो और क्या है.
एक समय मैं भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हुआ करता था। रेखांकित कर लें कि संघ का स्वयंसेवक अब भी हूं। शाखा पर भले न जाता हूं। इसलिए नहीं जाता कि अखबार की नौकरी में जाने का मौका नहीं मिलता। सुबह जब शाखा लगने का समय होता है तो मेरे सोने जाने का समय होता है और सायं शाखा जाने का समय होता है तो दफ्तर जाने का। अपने दक्षिणपंथी होने को मैं गर्व से स्वीकार करता हूं। हिंदू होने का मुझे अभिमान है। और ब्राह्मण कुल में पैदा होने के कारण समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का बोध भी। लेकिन मैं जब अपने दफ्तर में होता हूं। खबरों पर काम कर रहा होता हूं तो मैं सिर्फ और सिर्फ पत्रकार होता हूं। और खबरों से न्याय हो इसके लिए सचेत रहता हूं। वाममार्गियों सॉरी वामपंथियों की तरह अपने विरोधियों को कमतर दिखाने के लिए उनमें घालमेल नहीं करता। भाजपाई गलत हैं तो उनके खिलाफ भी लिखता हूं और वामपंथी गलत हैं तो उनके खिलाफ भी। मैं आडवाणी को बिलकुल पसंद नहीं करता जिन्होंने 39 की उम्र में अपने से 17 साल छोटी युवती से शादी की. में कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृतपाद डांगे को प्रणाम करता हूं जिन्होंने समवयस्क विधवा से विवाह किया। क्योंकि मैं पाखंडी नहीं हूं। स्वार्थी नहीं हूं। आज आसाराम को गरियाने वाले इंडिया न्यूज के लोग मनु शर्मा को क्यों भूल गए। इसी बहाने उनको भी याद कर लेते जिन्होंने जेसिका लाल की गोली मार कर हत्या कर दी थी। फिर किस तरह उनके पिता ने जो हरियाणा के कांग्रेस के कद्दावर नेता और बड़े उद्योगपति हैं उन्होंने उनको बचाने के लिए गवाहों को खरीदा। अजीत अंजुम जी एपी सिंह को अपने चैनल पर घेर रहे हैं। उनके विरोध में फेसबुक पर लिख रहे हैं। पर उनका ही चैनल है जो फ्रॉड निर्मल बाबा का कार्यक्रम फिर से प्रसारित कर रहा है। पैसे लेकर। मतलब आप नैतिकता की बात करेंगे और पैसे लेकर फ्रॉड का प्रचार करेंगे। आप से अच्छे एपी सिंह हैं जिनमें सच कहने का साहस है। जो बात एपी सिंह ने कही है वह बात देश के हर एक हजार में से 990 पिता सोचता है पर कहेगा नहीं। जो दस फीसदी कहेंगे उनमे भी ज्यादातर वे लोग होंगे जिनकी बेटियां परंपरागत रूप से धंधा करती हैं और देश में ऐसे सैकड़ों गांव हैं।
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