चुनाव का समय है। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए नामित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में भाजपा ही नहीं बल्कि लाखों ऐसे लोग भी उतर आए हैं। जिन्होंने कभी भाजपा को वोट नहीं दिया था। वे कहते भी हैं कि भाजपा को केवल वोट इसलिए देंगे क्योंकि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पहली पसंद मोदी हैं। मोदी के आलोचक बार बार इस मुद्दे को उठाते हुए कहते हैं कि किसी व्यक्ति का पार्टी से बड़ा हो जाना खतरनाक है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा को आगाह करने वाले उसके ये शुभेच्छु हमेशा से भाजपा विरोधी रहे हैं। हां कुछ ऐसे हैं जो अभी तक पार्टी में थे पर अब पार्टी छोड़ चुके हैं। लेकिन उनको पार्टी की चिंता इसलिए सताने लगी है कि उन्हें पसंदीदा जगह से टिकट नहीं मिला। तमाम मोदी विरोधियों को यह कष्ट है कि उनके इतने हमलों के बावजूद मोदी दिनोंदिन लोकप्रिय क्यों होते जा रहे हैं। शायद हमलावरों को मालूम नहीं कि इसका सबसे बड़ा कारण वे खुद हैं। अपने हमलों से वे मोदी को लोकप्रिय बना रहे हैं। उनका प्रचार कर रहे हैं।
मोदी कैसे प्रधानमंत्री साबित होंगे। यह भविष्य बताएगा। लेकिन लगातार तीन चुनाव जीतकर वह यह साबित कर चुके हैं कि वह अच्छे मुख्यमंत्री हैं और उनके पास विजन है। दरअसल, मोदी को आगे लाना भाजपा की मजबूरी थी। हालांकि भाजपा के दो और मुख्यमंत्रियों शिवराज चौहान और रमन सिंह का प्रदर्शन भी कमतर नहीं है। यह भी हो सकता था कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ती और प्रधानमंत्री पद पर चयन जीते हुए सांसद करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और अगर होता तो मेरी इस बात को रेखांकित कर लें कि भाजपा सत्ता में आना तो दूर शायद मुख्य विपक्षी दल भी न बन पाती। बगैर नेता घोषित हुए कोई भी फौज जीत नहीं हासिल कर सकती। नेता तो जरूरी है। कैसा भी हो। उसमें अच्छाइयां होंगी। कुछ बुराइयां भी होंगी। लेकिन नेता होना जरूरी है। आप पूरी दुनिया में देख लें। अमेरिका में नेता पहले घोषित हो जाता है। अमेरिका ही क्यों हर देश की राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी नेता के नेतृत्व में ही मैदान में उतरती हैं। देश में देख लें वही पार्टियां सफल हैं जिनका कोई एक घोषित नेता है। सोनिया,मुलायम सिंह, ममता, बादल, जयललिता, मायावती, आदि आदि। वामपंथ का आधार सिकुड़ते जाने का कारण उसका सामूहिक नेतृत्व ही है। त्रिपुरा जहां उनकी सरकार है वह माणिक सरकार के कारण है। पश्चिम बंगाल में जो कुछ था ज्योति बसु की वजह से था जो उनके हटने के बाद खत्म हो गया और बंगाल में ममता आ गईं। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि किसी भी पार्टी का कितना भी मजबूत संगठन क्यों न हो। एक नेता होना अनिवार्य। एक नेता। कई नहीं। कई हों लेकिन उस नेता का नेतृत्व स्वीकार करने वाले।
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