शुक्रवार, 28 मार्च 2014

मौत एक गुलमोहर की


कुछ लोग गुलमोहर की तरह होते हैं। प्यारे। बिंदास जिंदगी जीने वाले। सबको अपना बना लेने वाले। मेरे एक छोटे भाई आदर्श ऐसे ही थे। प्यारे। दुलारे। सनी। लेकिन ऐसे लोग बड़े निर्मम होते हैं। हमें असमय ही छोड़ जाते हैं। सनी भी छोड़ गए। समझ में नहीं आता जो सबसे प्यार करता था वह बेवफाई क्यों कर गया। दिक्कत तो यह है कि ऐसे गुलमोहर खुद तो निर्मम होते ही हैं,उनसे भी ज्यादा निर्मम उनकी यादें होती हैं। हम उन्हें लाख भूलने की कोशिश करें। भूल ही नहीं पाते। यादें पीछा ही नहीं छोड़तीं। माया मोह का बंधन कुछ ऐसा ही है। हमारे देश में बहुत से कथित संत माया मोह को मिथ्या बताते हैं। इनसे दूर रहने की बात करते हैं। मुझे लगता है कि वे झूठे हैं। हकीकत में वे झूठे हैं। कोई उनसे पूछे कि यदि मोह न हो तो पशु पक्षी अपने बच्चों को क्यों पालें। अपने हिस्से का भोजन उन्हें क्यों दे। उनकी सुरक्षा की चिंता क्यों करें। जाहिर है कि यह संसार माया मोह पर ही टिका है। मोह खत्म। संसार खत्म। अगर माया मोह मिथ्या है तो यक्ष युधिष्ठिर से यह प्रश्न क्यों करता कि संसार का सबसे बड़ा दुख क्या है और युधिष्ठिर के इस जवाब संतुष्ट क्यों होता कि पिता का पुत्र की अर्थी को कंधा देना। इसी से साबित हो जाता है कि मोह ही इस संसार के जीवित रहने का सबसे बड़ा कारण हैं। जिंदगी की तमाम खुशियां मोह के कारण ही मिलती हैं तो तमाम दुखों का कारण भी मोह है।

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