रविवार, 27 अक्तूबर 2013
बॉस इज आलवेज राइट
दो तीन सप्ताह पहले की बात है मेरे बॉस अपने केबिन से मेरे केबिन में आए। बोले-देखिएगा जो मीडिया दिग्गज आज मोदी को गरिया रहे हैं, मोदी के सत्ता में आने के बाद मोदी की शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर देंगे। हालांकि मेरे बॉस भाजपाई नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस के कुशासन क्षुब्ध जरूर हैं। होना भी चाहिए। और वही क्यों देश की 90 फीसदी आबादी कांग्रेस से क्षुब्ध है। गरीबों को खाने के लिए अनाज नहीं मिल रहा और अमीरों को प्याज नहीं मिल रहा। सोनिया भाभी को (माफ कीजिएगा मैं सुलतानपुर-अमेठी का हूं और जब सन 81 में राजीव भइया वहां चुनाव लड़ने आए तब से वहां के मेरी उम्र के नौजवान उन्हें भाभी कहते हैं। हालांकि यह रिश्ता शुरू संजय भइया और मेनका भाभी से हुआ था ) चाहिए की कुछ प्याज शीला काकी के घर भिजवा देतीं बेचारी चाची को हफ्ते भर प्याज के लिए तरसना पड़ा। खैर सोनिया भाभी ने शीला चाची को प्याज क्यों नहीं भिजवाया यह मेरे सोचने का सबजेक्ट नहीं है। इसलिए इसे रिजेक्ट कर बॉस वाले सबजेक्ट पर आता हूं। आना भी चाहिए। क्योंकि इन्क्रीमेंट तो उन्हीं पर निर्भर है। तो साहेबान मैं सोच रहा था कि बॉस कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे। वेदों में ऐसे ही थोड़े न लिखा है-बॉस इज आलवेज राइट। वैसे भी बॉस अगर राइट न हों तो सहकर्मी राइट टाइम नहीं रहते। अब देखिए न एन राम देश के सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिंदू का संपादक बनाकर लाए थे सिद्धार्थ वरदराजन जी को। प्रधानमंत्री जी के मीडिया सलाहकार थे। इस फैसले में पीएमओ से वरदराजन के रिलेशन का अर्थ सिद्ध था। क्लीयरतः। सिद्धार्थ होते हुए भी वरदराजन की समझ में यह बात क्यों नहीं आई। अगर आई होती तो उनका मन मोहन पर फिदा होने के बजाए उनसे जुटा होकर मोदी को खुदा मान चुका होता। वे दीवारों पर लिखी इस इस इबारत को द हिंदू के हेड होते हुए भी नहीं देख पाए कि राष्ट्रवादी हिंदू देश का अगला हेड है। अगर उन्होंने यह समझ लिया होता तो मोदी की रैली की खबर पहले पन्ने के अपर हाफ में न सही वैली में जरूर लगवा देते। दूसरी तरफ एन राम ऩे इसका अध्ययन कर लिया कि द हिंदू के कल्याण के लिए अब रामभक्त हिंदू से रिलेशन जरूरी है। इसी से अपना अर्थ सिद्ध होता है वरदराजन अब व्यर्थ हैं। सो उन्होंने राइट होते देऱ नहीं लगाई। आखिर बॉस हैं। जो ऑलवेज राइट होता है और उसके विजन को समझने वाले हर व्यक्ति का फ्यूचर ब्राइट होता है अन्यथा मामला टाइट हो जाता है।
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आखिर बॉस हैं। जो ऑलवेज राइट होता है और उसके विजन को समझने वाले हर व्यक्ति का फ्यूचर ब्राइट होता है अन्यथा मामला टाइट हो जाता है।
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