मंगलवार, 21 मई 2013

क्या खापें वाकई खलनायक हैं

खापें। खलनायक हैं। पुरातनपंथी हैं। अमानवीय हैं। कुछ ऐसी ही धारणा बन चुकी है। सही या गलत। इसपर विचार करने का न तो किसी के पास समय है और न ही कोई इसकी जहमत उठाना चाहता है। कौन साला ( या साली) एसी से निकल कर खापों को समझने के लिए गांवों में जाए। धूल फांके। पसीने पसीने हो। सो बेहतर है। अपनी अधकचरी जानकारी के आधार पर उनकी बात को खारिज कर दो। उन्हें गरियाओ। और प्रगतिशीलता का सुविधाजनक लिहाफ ओढ़कर सो जाओ। हर बात पर स्वस्थ बहस का स्वागत करने वाले भी इस पर बहस को तैयार नहीं। दरअसल खापों की बात रखने वालों उनके स्तर के होते ही नहीं। उनकी निगाह में। सच तो यह है कि खाप विरोधी अंग्रेजींदां लोग का मानसिक स्तर ऐसा होता है कि खापों के बारे में उनसे बहस करना हमारी देसज भाषा में चूतियापे का काम है। सो मैं न तो उनसे बहस करना चाहता हूं न ही उनपर अपने विचार थोपना चाहता हूं। मैं तो सिर्फ और सिर्फ उन लोगों से रूबरू हूं जो इस देस की माटी की भावनाओं को महसूसते हैं। प्यार करते हैं और सार्वजनिक रूप से उसका इजहार करते हैं। पिछले एक दशक में खापों पर यह आरोप लगाया गया कि वे ऑनरकिलिंग की समर्थक हैं। हालांकि ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। मैं यह स्वीकार करता हूं कि गांव की बेटी अपनी बेटी। गोती गोती भाई भाई जैसी सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ते हुए विवाह करने वाले जोड़ों की हत्याएं हुईं। यह जघन्य अपराध था। है। लेकिन ऐसा करने के लिए किसी खाप ने फरमान नहीं सुनाया। इस तरह की हर घटना में युवती के परिवार वाले ही संलिप्त पाए गए। फिर इसका दोष खापों को क्यों। क्या इसलिए कि खाप सामाजिक मर्यादाओं की समर्थक हैं। रेप की घटनाएं बढ़ीं तो खापों की तरफ से बात उठी कि कन्या का विवाह 15 की उम्र में कर दिया जाना चाहिए। हंगामा हो गया। खापों की तुलना मोहम्मद तुगलक से की जाने लगीं। बगैर यह सोचे कि इसके पीछे खापों की सोच क्या है। बगैर यह समझे कि पुलिस रिकार्ड मे दर्ज होने वाले रेप केसों में 90 फीसदी रेप के केस होते ही नहीं। सिर्फ दस फीसदी केस वाकई रेप के होते हैं जिनमें पीड़ित कोई बच्ची होती है या कोई अकेली महिला। यह भी रेखांकित कर लें कि अबोध बच्चियों के साथ दरिंदगी करने वाला तो अकेला वहशी हो सकता है लेकिन वयस्क महिला के साथ एक व्यक्ति अकेले रेप करे यह नामुमिकन ही है। हां हथियार का भय दिखाकर करता है तो और बात है। इसीलिए ज्यादातर घटनाएं गैंगरेप की होती हैं। तो साहिबान। कद्रदान। यह बात 24 कैरेट सोने की तरह सत्य है कि 15 होते होते किशोरियों में किशोरों के शरीर में हारमोंस के कारण जो त्वरित परिवर्तन आते हैं, उनके ताप से उनकी देह तपने लगती है। टीवी- अखबार वाले कामसूत्र से मूड्स बना कर इसे और भड़का देते हैं तो जापानी तेल लगाने की सलाह देकर अनवांटेड का सहारा लेकर मोस्टवांडेड बना देते हैं। नतीजा। छोटी सी लव स्टोरी शुरू होती है और फिर एक दिन दरोगा जी थाने में रेप,अपहरण और जान से मारने की धमकी देने जैसी आईपीसी की धाराओं को परिभाषित करते हुए प्रेमी का इंटरव्यू ले रहे होते हैं। तो, अगर इस स्थित से बचने के लिए उसी उम्र में शादी का मशविरा खापें अगर देती हैं, जिस उम्र में देह को देह की सर्वाधिक जरूरत होती है तो क्या बुरा है। ज्यादा नहीं दो दशक पहले तक ऐसा ही होता भी था। गांवों में अब भी होता है। शहरों में नहीं। क्योंकि यहां अभिभावकों को बच्चों की शारीरिक मानसिक जरूरतों से ज्यादा उनके करियर की चिंता होती है। दरअसल वे खुद जिंदगी जी नहीं रहे होते बल्कि ढो रहे होते हैं सो उन्हें भी लगता है कि बच्चा जिंदगी ढोने लायक बन जाए। और इस लायक बनने में बच्चे बच्चे नहीं रह जाते, सीधे बूढ़े हो जाते हैं। मेरा सवाल है कि क्या शादी करियर की राह में रोड़ा है। बच्चा शादी के बाद क्यों नहीं पढ़ सकता। बच्ची ससुराल में जाकर अपने सपनों को पंख क्यों नहीं लगा सकती। दोनों संयुक्त रूप से एक साथ रहते हुए। खाते हुए। खेलते हुए। अपने फ्यूचर की प्लानिंग क्यों नहीं कर सकते। कर सकते हैं। करते भी हैं। सफल भी होते हैं। लेकिन वही जिनके मां बाप प्रगतिशीलों की निगाह में पुरातनपंथी होते हैं। दरअसल कथित प्रगतिशील भीतर से खुद इस भावना से ग्रस्त होते हैं कि उनकी बेटी को ससुराल में अवसर नहीं मिलेंगे। क्योंकि अपनी बहू को वे अवसर देना नहीं चाहते। उनकी सोच इतनी संकीर्ण होती है, वे मानते हैं कि बहू आकर बेटे का ध्यान भंग कर देगी। हुजूरे आला बहू आकर बेटे का ध्यान केंद्रित कर देगी। अन्यथा बेटे का ध्यान तो एक नहीं कई कई गर्लफ्रेंड में पहले से ही बंट रहा होता है। अब अंतिम बात। अगर किसी युवक युवती का विवाह 20 की उम्र में होता है और वे 23-24 में पिता-मां बन जाते हैं तो 40-45 तक होते होते वे दादा दादी बन जाएंगे। खुदा न करे उनके बेटे के साथ कोई अनहोनी हो जाए। लेकिन होती भी है तो दादा दादी उसे पाल पोस कर बड़ा ही नहीं कर देंगे बल्कि मां बाप की कमी भी नहीं महसूस होने देंगे। लेकिन जब आप शादी ही 35 पार होकर करेंगे तो रिटायरमेंट तक उनकी ही चिंता में लगे रहेंगे। अपनी जिंदगी जी ही नहीं पाएंगे। पहले अपने करियर की चिंता फिर बच्चों के। और कहीं आप हादसे का शिकार हो गए तो बच्चे का भविष्य क्या होगा। क्योंकि भारतीय संस्कारों वाली मां या पिता अकेला भी संभाल लेगा पर प्रगतिशील मां या पिता तो सेकेंडशादी डॉटकॉम पर सर्च मारकर जिंदगी को फिर से ढोना शुरू कर देगा। बच्चा क्या करेगा। माली हालत के मुताबिक या तो होस्टल में रहेगा या ढाबे पर प्लेट धोएगा। सो भइया जी खाप के मशविरे पर इस नजरिए से भी सोचें।

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

कुंडा के डीएसपी हत्याकांड का सच

कुंडा के डीएसपी हत्याकांड में राजाभइया को सीबीआई क्लीन चिट दे चुकी है। देनी ही थी क्योंकि डीएसपी को मारने वाले प्रधान नन्हे यादव का बेटा है और यह बात साबित हो चुकी है। अब सवाल उठता है कि डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद ने राजा भइया के खिलाफ जो तहरीर दी वह क्यों दी। वह तहरीर परवीन आजाद ने लिखी भी नहीं थी। बल्कि कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा ने वह तहरीर लिखी थी और उसपर परवीन के मुताबिक उन्होंने केवल दस्तखत किए थे। लखनऊ से प्रकाशित कैनविज टाइम्स के 29 अप्रैल के अंक में संजीदा पत्रकार प्रभात रंजन दीन की रिपोर्ट छपी है। वह रिपोर्ट साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं- कुंडा हत्याकांड का सबसे बड़ा रहस्य खुल गया है कि सीओ जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद की संदेहास्पद तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कौन था। मरहूम सीओ की पत्नी ने सीबीआई के समक्ष यह स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने बिना देखे तहरीर पर हस्ताक्षर कर दिए थे। सीओ की पत्नी की तहरीर में ही यह बताया गया था कि सीओ की हत्या राजा भैया ने कराई थी और तभी इतना बावेला मचा कि मामले की जांच सीबीआई से करानी पड़ी। लेकिन सीबीआई ने उस तहरीर को अपनी जांच में प्रामाणिक नहीं पाया। अब तो सीओ की पत्नी ने भी सीबीआई को यह बयान दे दिया है कि वे मौके पर नहीं थीं, लिहाजा उन्हें घटना के बारे में सटीक जानकारी नहीं थी। तहरीर किसी और व्यक्ति ने लिखी थी, उन्होंने केवल उस पर हस्ताक्षर किए थे। सीबीआई ने यह भी पता लगा लिया है कि संदेहास्पद तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कौन था। तो आप भी सुन लें... परवीन आजाद की तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कुंडा का पूर्व सीओ खलीकुर जमा था। खलीकुर जमा ही जियाउल हक के पहले कुंडा में सीओ थे। अभी वे अम्बेडकर नगर के सर्किल अफसर हैं। कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा ने ऐसी तहरीर क्यों लिखी थी? किसके इशारे पर लिखी थी? क्या वह घटनास्थल पर मौजूद थे? और उन्होंने सीबीआई को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी थी? यह सीबीआई की छानबीन का विषय है। लेकिन यह तय हो गया है कि कुंडा हत्याकांड के पूरे घटनाक्रम को एक खास दिशा में मोडऩे की सुनियोजित साजिश रची गई थी। अब सीबीआई कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा से पूछताछ करने की औपचारिकताओं में लगी हुई है। 'कैनविज टाइम्स'ने आपको पहले भी बताया था कि कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या के बहाने उत्तर प्रदेश सरकार को साम्प्रदायिकता के आधार पर अस्थिर करने की योजना थी। सीओ की विधवा के हस्ताक्षर से जो तहरीर दी गई थी, वह इसी साजिशी इरादे से बुनी गई थी। परवीन अपनी ही तहरीर में लिखे गए तथ्यों को स्पष्ट नहीं कर पाईं। सीबीआई जांच में भी तहरीर में लिखे गए तथ्यों की कोई प्रामाणिकता नहीं पाई गई। अब सीबीआई की जांच का विषय यह भी है कि सीओ हत्याकांड के बहाने कौन शख्स अखिलेश यादव की सरकार को हिलाने की साजिश में लगा था और उसके साथ अन्य कौन लोग तिकड़म में शामिल थे? परवीन आजाद की तहरीर में लिखा गया था कि सीओ जियाउल हक की हत्या राजा भैया के इशारे पर उनके लोगों ने की। दो मार्च की शाम को प्रधान की हत्या के बाद बलीपुर पहुंचे सीओ को गुलशन यादव, हरिओम शंकर श्रीवास्तव, रोहित सिंह और गुड्डू सिंह ने राजा भैया के इशारे पर लाठी-डंडे व सरिया से पीटा। जब वह गिर गए तो गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। राजा भैया के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में यही तहरीर आधार बनी। तहरीर के जरिए परवीन आजाद ने कहा था कि उनके पति को तीन गोलियां लगी थीं, उन्होंने खुद देखा था कि उनके पति के पैर में दो गोलियां और एक गोली सीने में लगी थी। यह बात सफेद झूठ पाई गई। क्योंकि सीओ को एक ही गोली लगी थी। सीबीआई की जांच में यह आधिकारिक तौर पर पुष्ट हो गया सीओ जियाउल हक की हत्या प्रधान नन्हे यादव के बेटे योगेंद्र यादव उर्फ बबलू ने की थी। सीबीआई ने वह राइफल पहले ही बरामद कर ली थी जिससे सीओ को गोली मारी गई थी। बाद में वह गोली भी बरामद कर ली गई, जिसे योगेंद्र ने छिपा कर रख दिया था। सीबीआई ने उस साजिश का भी पर्दाफाश कर दिया जिसके तहत योगेंद्र को नाबालिग साबित करने का कुचक्र रचा गया था। मतदाता सूची में नाम पाए जाने के बाद सीबीआई ने उसका वोटर आईडी कार्ड भी बरामद कर लिया। बाद में स्कूल के प्राचार्य ने भी किशोर न्यायालय को योगेंद्र की उम्र बताई और उसके बालिग होने की आधिकारिक पुष्टि की। कुंडा हत्याकांड जितनी गुत्थियां लिए नहीं था उससे अधिक गुत्थियां हत्याकांड के बाद की साजिशों में उलझी हैं। लेकिन उसके सिरे भी अब साफ-साफ नजर आने लगे हैं। हत्याकांड के खुलासे के साथ-साथ साजिश-कांड का खुलासा भी उतना ही जरूरी हो गया है, क्योंकि ऐसे तत्वों का चेहरा सामने आना ही चाहिए जो किसी भी घटना में चौकड़ी जमा कर धर्म, जाति और राजनीति की गंदगी फेंटने का काम शुरू कर देते हैं। इसमें नेता, पत्रकार, पुलिस और कानूनदां सब शामिल हैं। आपको याद ही होगा कि सीओ जियाउल हक की हत्या के बाद प्रदेश के कद्दावर मंत्री आजम खान ने यह बयान जारी किया था कि इस घटना में जो कोई भी दोषी होगा, उसे जरूर पकड़ा जाएगा। प्रदेश के लोगों को भी यही उम्मीद है कि सीबीआई की जांच से कुंडा हत्याकांड और उस हत्याकांड के समानान्तर चले षडयंत्र-कांड के दोषियों को जरूर पकड़ा जाएगा। चलते-चलते एक और रोचक जानकारी आपको दे दें। कुंडा हत्याकांड के सिलसिले में सीबीआई पुणे-लिंक तलाश रही है। कौन हैं वे लोग जो लखनऊ की जेल में बंद लोगों से पुणे से जानकारियां ले रहे हैं। कुंडा हत्याकांड में जेल में बंद कुछ लोग पुणे के कुछ लोगों से मोबाइल फोन से बातें करते पकड़े गए हैं। सीबीआई अब पुणे-लिंक की छानबीन कर रही है। सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि हत्याकांड में पकड़े गए गुड्डू और उसके भाई राजीव पुणे के कुछ लोगों से बातें करते पाए गए हैं। अपने सम्बोधन में ये 'क्राइम की जय'कहते हैं, फिर इनकी बातें आगे बढ़ती है। सीबीआई को सर्विलांस में यह पता चला है कि पुणे के जिन लोगों से गुड्डू और राजीव की बातें हो रही थीं, वे कौशाम्बी के रहने वाले हैं। वे पुणे में क्या करते हैं और उनकी बातचीत का कुंडा हत्याकांड से कोई अंतरसम्बन्ध है कि नहीं इसकी छानबीन की जा रही है।

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

पहले प्यार के मायने

पहला प्यार क्या होता है। एक पुराना गाना है-लेके पहला पहला प्यार। भर के आंखों में खुमार। जादूनगरी से आया है कोई जादूगर। मतलब पहला प्यार वह होता जब पहली बार कोई पुरुष या स्त्री एक दूसरे के प्रति इतना आकर्षित होते हैं कि उसकी देह को ब्रेल लिपि में पढ़ने की इच्छा करने लगते हैं। मुझे लगता यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। स्त्री के रूप में हमारा पहला प्यार हमारी मां होती है। जो हमें देखे बगैर जब हम गर्भ में होते हैं हमसे असीम प्रेम करने लगती है। उठते बैठते हर समय ध्यान रखती है कि गर्भस्थ शिशु को किसी तरह का कष्ट न हो। पुरुष के रूप में हमारा पहला प्यार पिता होता है। मां की तरह वह भी बगैर देखे ही हमें प्यार करने लगता है। हमारे लिए प्यारा सा नाम सोचने लगता है। दोनों यह नहीं जानते कि संतान लड़की होगा या लड़का, इसलिए दोनों तरह के नाम सोचते हैं। दोनों अपने बच्चे को वह बनाना चाहते हैं जो वह खुद नहीं बन पाए। दोनों अपने बच्चों को वह सब देना चाहते हैं, जो उन्हें बचपन में नहीं मिला। तात्पर्य यह कि हमारा पहला प्यार हमारे माता पिता होते हैं। उसी तरह हम जिस गांव में जिस शहर में पैदा होते हैं। वह भी हमारा पहला प्यार होता है। आदमी मरते दम तक न मां-बाप को भूल पाता है न अपने बचपन के शहर को। कभी कभी जब हम अकेले होते हैं, परेशानियों से घिरे होते हैं तो हमें मां बाप की याद बेहद सताती है। इसी तरह कुछ खास मौके पर अपने गांव-शहर की याद भी कुछ उसी तरह का जुल्म ढाती है। जब जब गर्मी की छुट्टियां आती हैं। बच्चे घर जाते हैं। मुझे सुल्तानपुर याद आने लगता है। जी चाहता है। उड़कर पहुंच जाऊं। दरअसल मेरी दिक्कत यह है कि सुलतानपुर मेरे बचपन का प्यार और यार नहीं है बल्कि जवानी का भी है। मैंने अपना गृहनगर 35 का हो जाने के बाद छोड़ा। इसलिए यह भी दिक्कत है कि अब किसी और से दिल भी नहीं लगा पाता हूं।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

गलती भाजपा की

चीन भारत की सीमा में घुसा आ रहा है। और कांग्रेसी चपु हैं। विदेश मंत्री ऊंघ रहे हैं। ऐसा क्यों। मैंने एक कांग्रेसी से पूछा तो उसने जोरदार जवाब दिया। बोला, हम चाहते हैं कि भारत पर चीन कब्जा कर ले। क्योंकि फिर हम संयुक्त राष्ट्र में गर्व से कह सकेंगे कि हम वीटो पावर वाले मुल्क हैं। इसका एक फायदा और होगा जैसे आज इतिहास में पढ़ाया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू राजा था। वैसे ही पढ़ाया जाएगा कांग्रेस आजाद भारत की आखिरी सत्तारूढ़ पार्टी थी। रही बात गुलामी की तो वह तो हम हजारों साल से करते रहे हैं। इसके लिए कांग्रेस को दोष देने वालों को इतिहासकार जवाब दे देंगे कि जब मुस्लिम आए तब तो कांग्रेस नहीं थी। जब अंग्रेज आए तब तो कांग्रेस नहीं थी। इसलिए इसका दोष कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता। इसके लिए दोषी शायद भाजपाई रहे हों जिन्होंने बेवजह हल्ला मचाया और कांग्रेस की वीटो पावर वाला मुल्क बनने की नीति में रोड़े अटकाए

कब तक नंगे होते रहेंगे खान

बात शायद सन 90 की है। हम लखनऊ में हुआ करते थे। हमारी एक चंडाल चौकड़ी थी। जिसके नेता स्वर्गीय राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक थे। पिछले वर्ष उनका कैंसर से लड़ते हुए असमय निधन हो गया। दूसरे नंबर पर श्री ओमप्रकाश तिवारी और तीसरे नंबर श्री राजेश राय। चौथे नंबर पर नाचीज खुद था। हम तीनों पर्यटक जी के सामने नानवेज बाते नहीं करते थे। इसका मतलब यह नहीं कि जब हम तीनों होते थे तो नानवेज ही बतियाते थे। हां कभी कभी गंभीर मुद्दे पर चरचा करते समय जब जरूरी होता था नानवेज भी हो जाया करता था। प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। उनके श्रम मंत्री आजम खान ने एक दिन बवाल कर दिया। कारण-वह वीवीआईपी गेस्ट हाउस के बाथरूम गुस्ल कर रहे थे तो दरवाजे के एक छोटे से छेद से किसी कर्मचारी ने उन्हें देख लिया था। इसी पर वह भड़क गए। इसकी गाज राज्य संपत्ति विभाग के कई अफसरों पर गिरी। दरवाजे का छेद बंद कराया गया। अखबारों में बड़ी बड़ी खबरें छपीं। और फिर इस गंभीर मुद्दे पर हम तीनों में चरचा हुई कि आजम क्यों बिफरे। अगर वह निर्वस्त्र थे तो यह कोई नई बात नहीं। हमाम में तो सब नंगे होते हैं। या कुछ और कर रहे थे। अब हमारे त्रिगुट जिस अनुमान पर सहमत हुआ, वह हम आपको नहीं बताएंगे। वैसे हम आपको यह बात भी नहीं बताते लेकिन आजम साहब को जब अमेरिका ने नंगा कर तलाशी ली तो हमें यह बात याद आ गई। तब आजम ने यूपी के अधिकारियों के खिलाफ हल्ला मचाया था। क्या अब अमेरिका के खिलाफ हल्ला मचाएंगे। मचाएंगे भी तो क्या कर लेंगे। ओबामा सपाई थोड़े ही हैं। वह तो शाहरूख खान को भी नंगा कर चुके हैं। और सबसे बड़ी बात यह कि अखिलेश क्या करेंगे। चाचू को उनके सामने ही नंगा तो कर ही दिया उनकी भी लानत मनामत की।अब एक गंभीर सवाल। आजम जैसे भी हों। जो भी बकते हों। लेकिन हैं तो हमारे एक प्रदेश के माननीय मंत्री। अमेरिका कब तक ऐसे हमारा अपमान करता रहेगा। कब तक। जब तक मोदी को वीजा न देने पर आजम खान आवाज नहीं उठाएंगे या आजम खान के नंगा किए जाने पर भाजपाई नहीं विरोध जताएंगे।

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

कभी शूतर्क भी जरूरी हो जाता है

तर्क कई तरह के होते हैं। सुतर्क भी होता है और कुतर्क भी। दरअसल सुतर्क उनके लिए होता है जिनके तर्कों से आप प्रभावित नहीं होते बल्कि उनके तर्कों को अपने सुतर्कों से काट कर आप उन्हें प्रभावित करना चाहते हैं। स्वस्थ बहस ऐसी ही होती है। लेकिन कुछ लोग आपके तर्कों को अपने कुतर्कों से काटते हैं। तब। उस स्थिति में आपके सामने सिर्फ एक तर्क का सहारा रह जाता है। वह होता है शूतर्क। शूतर्क की परंपरा कब शुरू हुई, यह तो हम नहीं जानते लेकिन इतना जानते हैं कि यह सदियों से चली आ रही है। आधुनिक काल में इसका उदाहरण पेश किया था, राजा भैया ने। राजा भैया यानी रवींद्र प्रताप सिंह, जिन्होंने सन 77 में अमेठी से संजय गांधी को पराजित किया था। ईमानदार राजनेता थे। 26 की उम्र में पहली बार विधायक बने और जब 77 में लोकसभा लड़े तो उनके पास निजी वाहन के नाम पर सिर्फ एक जावा मोटरसाइकिल थी। सांसद बने लेकिन औरों की तरह नहीं लूट कर घर भर लें। ईमानदार बने रहे सो बाद में फिर से सुलतानपुर कचहरी में वकालत करने लगे। एक जज साहब के यहां उनके एक मुवक्किल की जमानत की अरजी लगी थी। जज साहब ने कुतर्क देते हुए खारिज कर दी। साथ में टिप्पणी की-आप सुबह वरुणा एक्सप्रेस से लखनऊ हाईकोर्ट चले जाएं (वरुणा उस समय नई नई चली थी, वाराणसी से लखनऊ तक)। फिर क्या था। राजा भैया भड़क गए। जूता निकाला और सीधा फेंक कर मारा जज साहब पर। बोले मैं तो हवाई जहाज से दुनिया घूम चुका हूं। तुम वरुणा पर बैठने को तरस रहे हो। मैं नहीं। तो यह था हमारे राजा भैया का कुतर्क के जवाब में शूतर्क। वैसे उनके तर्क भी जानदार होते थे। 77 में उन्होंने संजय गांधी को हराया। 80 में वह हार गए। मतगणना के बाद जब वह बाहर निकले तो कांग्रेसी जोर जोर से नारे लगाते हुए डांस करने लगे। राजा भैया पहुंच गए उनके बीचे। बोले- कांग्रेसियों एक बार मैंने पटका एक बार तुम जीते। फाइनल अभी बाकी है। अगले चुनाव में होगा। अभी मत नाचो। हालांकि फाइनल नहीं हो पाया क्योंकि संजय जी की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई।

गुरुवार, 6 सितंबर 2012