गुरुवार, 26 सितंबर 2013
इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
विश्व में दो प्रकार के धर्म हैं-एक इंडो वैदिक दूसरे सेमेटिक। इंडो वैदिक धर्म जिसे भारत में सनातन धर्म कहा जाता है उपजे पंथ हैं-शैव, वैष्णव,जैन, बौद्ध, सिख,आदि
सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ हैं,यहूदी, ईसाई, इस्लाम आदि
सबसे पहले इंडो वैदिक धर्म के बारे में
मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। (मनुस्मृति ६.९२)
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं ।
याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम् ।।
(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति )
श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं :
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।।
महाभारत के महान् यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं -
इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान् बन जाता है।
धर्म के इऩ लक्षणों से स्पष्ट है कि समाज के लिए जो कल्याणकारी है वही धर्म है। वास्तव में धर्म प्राचीनकाल में संविधान का पर्यायवाची हुआ करता था। आज जिस प्रकार संविधान का उल्लंघन करने पर व्यक्ति कानून द्वारा दंडित किया जाता है उसी तरह प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था में धर्म विपरीत आचरण करने पर समाज द्वारा दंडित किया जाता था। उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता था। इससे एक बात स्पष्ट है कि धर्म का उपास्य,उपासना पद्धति से कोई संबंध नहीं है। इंडो वैदिक धर्म मानता है कि ईश्वर एक है। लेकिन एकेश्वरवादी होने के बावजूद आप किसी भी रूप में उसकी उपासना कर सकते हैं। शिव के रूप में विष्णु के रूप में हनुमान के रूप में या मां दुर्गा या फिर अन्य देवी देवताओं के रूप में। लेकिन धर्म परायण होने के नाते आप दूसरे के उपास्य की निंदा नहीं कर सकते। गाली नहीं दे सकते। इसीलिए हनुमान भक्त भी शिव मंदिर से गुजरता है तो सिर झुका लेता है। वह मुस्लिम संत साईं बाबा की उपासना करता है। अजमेर शरीफ की भी और वैष्णों देवी की भी। कभी इस बात पर संघर्ष नहीं होता कि तुम्हारा उपास्य गलत है। वह तो चर्च को भी प्रणाम कर लेता है और मस्जिद को भी। इंडो वैदिक धर्म कि विशेषता है कि वह अपने पंथों में और पंथों को जोड़ने से परहेज नहीं करता। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय तो ईसाई हिंदू और मोहम्मदी हिंदू की परिकल्पना भी करते थे।
दूसरी तरफ सेमेटिक धर्म के पंथ भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं। मतलब एकेश्वरवाद दोनों में कॉमन है। संघर्ष का कारण अगला चरण है। सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ एकेश्वरवाद के साथ ही एकोपास्यवाद में भरोसा रखता हैं। दूसरे का उपास्य और उपासना पद्धति उन्हें स्वीकार नहीं। उसके प्रति वे असहिष्णु हैं। ईसाई पंथ के रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट पंथों में टकराव, इस्लाम में शिया सुन्नी टकराव इसी का कारण है। और अगर आपको बुरा न लगे तो कह दूं कि विश्व भर में आतंक का कारण भी सेमेटिक धर्म से उपजे पंथों की एकोपास्यवाद की सोच ही है।
दूसरी तरफ इंडोवैदिक धर्म एकेश्वरवादी होते हुए भी बहुउपास्यवादी हैं। इसलिए उनमें टकराव नहीं होता क्योंकि उनका मूल धर्म उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। क्यों उसके लक्षणों में धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ;शामिल हैं। उसका मानना है कि ईश्वर कण कण में है तो शिव जी की मूर्ति में भी है। हनुमान जी की मूर्ति में भी, गुरुद्वारे में है तो मंदिर में भी और चर्च में है तो मस्जिद में भी. इसीलिए इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
रविवार, 15 सितंबर 2013
तो एपी सिंह ने गलत क्या कहा
हम भारतीयों में तमाम अच्छाइय़ां हैं. लेकिन दो चीजे ऐसी हैं, जो हमारी तमाम अच्छाइयों पर मेरिट पर भारी पड़ जाती हैं। पहली हम पाखंडी हैं। दूसरी हम स्वार्थी हैं। पाखंड और स्वार्थ हममें कूट कूट कर भरा हुआ है. दिल्ली रेपकेस के दोषियों को फांसी की सजा हुई. नहीं होनी चाहिए थी.उन्होंने रेप किया था. रेप के लिए आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी। जिस हरामजादे ने उसके शरीर में सरिया डालते हुए कहा-ले साली मर और बस से बाहर फेंका फांसी उसे होनी चाहिए थी. जिसे तीन साल की सजा दी गई. क्योंकि उसके स्कूल के कक्षा चार तक रिकॉर्ड के मुताबिक उस दिन तक उसके बालिग होने में तीन महीने बाकी थे। स्कूल का सर्टिफिकेट सही था या नहीं इसके लिए उसकी मेडिकल जांच भी नहीं कराई गई। नवीनतम चिकित्सा तकनीकों से पता चल सकता है कि वह बालिग था या नहीं. लेकिन अदालत ने ऐसा नहीं किया. क्यों. उसे नाबालिग मान लिया. सीधी सी बात है जो व्यक्ति बलात्कार कर सकता हो वीभत्स तरीके से हत्या कर सकता हो. वह नाबालिग कैसे हो सकते है. इस फैसले के खिलाफ कोई हंगामा नहीं हुआ. और तो और अब वह बालिग हो चुका है इसलिए सुधार गृह में भी नहीं रखा जाएगा. उसे घर पर कैद रखा जाएगा. इसपर कोई बहस नहीं हुई. इसके खिलाफ आवाज उठाई डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने। लेकिन जब दो आरोपियों के वकील ने जज के फैसले पर प्रतिक्रिया कि आपने मीडिया और राजनीति के दबाव में फांसी का फैसला दिया है तो हंगामा हो गया. वकील एपी सिंह को सब गालियां देने लगें। बुरा बताने लगे.क्यों. मैं यह नहीं कहता कि यह फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया. लेकिन यह दावे के साथ कहता हूं कि सबसे वीभत्स अपराधी का फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया। आप सोचें. देश का सेनानायक अपनी जन्मतिथि के प्रमाण में हाईस्कूल का सर्टिफिकेट पेश करता है तो उसे अदालत नहीं मानती। एक बलात्कारी और हत्यारे के कक्षा चार की जन्मतिथि मान लेती है। हद है। यह न्याय नहीं पाखंड है। न्याय तो यहां खंड खंड है।
अब अगली बात एपी सिंह ने कहा कि मैं अपनी बेटी को विवाह से पहले रात रात भर घर से बाहर ब्यावफ्रेंड के साथ घूमने की इजाजत नहीं दूंगा। देह संबंध बनाने की इजाजत नहीं दूंगा और ऐसा करेगी तो उसे जिंदा जला दूंगा। उन्होंने जिंदा जलाने की बात गलत कही। क्रोध में कही। यह भी देखा जाना चाहिए. लेकिन सब पिल पड़े उनपर. जो उन्हें गरिया रहे हैं. दरअसल, वे सब पाखंडी हैं. अगर नहीं तो कहें कि मैं अपनी बेटी को विवाह पूर्व देह संबंध बनाने की इजाजत दूंगा. और अगर उसका ब्वायफ्रेंड कन्डोम का इस्तेमाल भूल गया या वह आईपिल समय पर नहीं ले पाई तो उसके बच्चे का नाना बाखुशी बनूंगा। अब तक तो किसी ने ऐसा नहीं कहा.कोई कहेगा भी नहीं.अगर कोई युवक या युवती यह कहता है कि वे सिर्फ दोस्त हैं तो वे झूठ बोलते हैं। दोस्ती का कोई रिश्ता नहीं होता। जब दो पुरुष दोस्त होते हैं तो उनके बीच भाई का रिश्ता होता है। वे एक दूसरे के बच्चों के उम्र के मुताबिक चाचा ताऊ होते हैं। भाई में और भाई रूपी दोस्त में सिर्फ एक फर्क होता है। हम अपने से बड़े भाई के साथ बहुत सारी बातें नहीं सांझा करते हें। लेकिन दोस्त रूपी भाई के साथ हर बात साझा कर लेते हैं। घर की दफ्तर की बिस्तर की। इसलिए दोस्ती का रिश्ते भाई के रिश्ते से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यही बात स्त्रियों में है। वे अपनी सहेली रूपी बहन से हर बात साझा कर लेती हैं, जो बड़ी या छोटी बहन से नहीं कर सकतीं। सो दुनिया में किसी सत्री और पुरुष का रिश्ता दोस्त का नहीं हो सकता। भाई बहन, बाप बेटी, बेटा मां या पति पत्नी/प्रेयसी का ही हो सकता है। सो ब्वायफ्रेंड केवल और केवल प्रेमी होते हैं। जिनके कई होते हैं ब्वाय फ्रेंड या गर्लफ्रेंड होते हैं वे प्रेमी प्रेमिका भी नहीं होते। सिर्फ और सिर्फ विपरीत लिंग के आकर्षण में बिंधे ऐसे युवक युवती होते हैं जो एक दूसरे की देह को ब्रेल लिपि में पढ़ने का आनंद लेने के लिए जुड़े होते हैं। अगर आप कुंवारे/कुंवारी हैं और आप को कोई युवक/युवती पसंद है तो उससे प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन विवाह से पहले देह संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं लेकिन यह तय हो कि विवाह होगा ही। हालांकि बेहतर यही होगा कि विवाह पूर्व इससे बचा जाए। अपने प्रगतिशील मानने वाली कितनी युवतियां शादी के बाद अपने पति से स्वीकार कर सकती हैं कि उनके कई लोगों से देह संबंध रहे हैं। कोई नहीं तब सब पाखंड करती हैं कि आप मेरी जिंदगी में आऩे वाले पहले पुरुष हो या पहली महिला। हां कुछ तथाकथित हाई सोसायटी वाले लोगों की बात दूसरी है। मसलन भाजपा की हेमामालिनी की और वामपंथी शबाना आजमी जैसे इसके कई उदाहरण हैं, जिन्होंने नारी स्वतंत्रता की वकालत करते हुए अपने पतियों की पूर्व पत्नियों के हक पर डाका डाला। स्मृति ईरानी ने तो अपनी सहेली के पति को छीन लिया। अब ऐसे लोग नारी स्वतंत्रता की वकालत करें तो वह पाखंड नहीं तो और क्या है.
एक समय मैं भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हुआ करता था। रेखांकित कर लें कि संघ का स्वयंसेवक अब भी हूं। शाखा पर भले न जाता हूं। इसलिए नहीं जाता कि अखबार की नौकरी में जाने का मौका नहीं मिलता। सुबह जब शाखा लगने का समय होता है तो मेरे सोने जाने का समय होता है और सायं शाखा जाने का समय होता है तो दफ्तर जाने का। अपने दक्षिणपंथी होने को मैं गर्व से स्वीकार करता हूं। हिंदू होने का मुझे अभिमान है। और ब्राह्मण कुल में पैदा होने के कारण समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का बोध भी। लेकिन मैं जब अपने दफ्तर में होता हूं। खबरों पर काम कर रहा होता हूं तो मैं सिर्फ और सिर्फ पत्रकार होता हूं। और खबरों से न्याय हो इसके लिए सचेत रहता हूं। वाममार्गियों सॉरी वामपंथियों की तरह अपने विरोधियों को कमतर दिखाने के लिए उनमें घालमेल नहीं करता। भाजपाई गलत हैं तो उनके खिलाफ भी लिखता हूं और वामपंथी गलत हैं तो उनके खिलाफ भी। मैं आडवाणी को बिलकुल पसंद नहीं करता जिन्होंने 39 की उम्र में अपने से 17 साल छोटी युवती से शादी की. में कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृतपाद डांगे को प्रणाम करता हूं जिन्होंने समवयस्क विधवा से विवाह किया। क्योंकि मैं पाखंडी नहीं हूं। स्वार्थी नहीं हूं। आज आसाराम को गरियाने वाले इंडिया न्यूज के लोग मनु शर्मा को क्यों भूल गए। इसी बहाने उनको भी याद कर लेते जिन्होंने जेसिका लाल की गोली मार कर हत्या कर दी थी। फिर किस तरह उनके पिता ने जो हरियाणा के कांग्रेस के कद्दावर नेता और बड़े उद्योगपति हैं उन्होंने उनको बचाने के लिए गवाहों को खरीदा। अजीत अंजुम जी एपी सिंह को अपने चैनल पर घेर रहे हैं। उनके विरोध में फेसबुक पर लिख रहे हैं। पर उनका ही चैनल है जो फ्रॉड निर्मल बाबा का कार्यक्रम फिर से प्रसारित कर रहा है। पैसे लेकर। मतलब आप नैतिकता की बात करेंगे और पैसे लेकर फ्रॉड का प्रचार करेंगे। आप से अच्छे एपी सिंह हैं जिनमें सच कहने का साहस है। जो बात एपी सिंह ने कही है वह बात देश के हर एक हजार में से 990 पिता सोचता है पर कहेगा नहीं। जो दस फीसदी कहेंगे उनमे भी ज्यादातर वे लोग होंगे जिनकी बेटियां परंपरागत रूप से धंधा करती हैं और देश में ऐसे सैकड़ों गांव हैं।
रविवार, 28 जुलाई 2013
अध्ययनशील हैं दिग्गी राजा
आप में से कितने लोग बता सकते हैं कि टंच किस भाषा का शब्द है। मुझे यह शब्द न हिंदी के शब्दकोश में मिला न इंग्लिश की डिक्शनरी में। रही बात माल की तो वह तो नजरिए की बात है। दिग्गी साहब राजा हैं उनके लिए महिलाएं माल हो सकती हैं। वैसे ही जैसे सड़क पर अपनी आवारागर्दी का सगर्व प्रदर्शन करने वालों के लिए होती हैं। अब टंचमाल को लेकर आप दिग्गी राजा की चाहे जितनी आलोचना करें लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि वह अध्ययनशील हैं। ऐसा नहीं कि मैं टंच का मतलब नहीं जानता हूं। वयस्क होते होते जानने लगा था कि टंच माल के मायने क्या होते हैं। दरअसल,बड़ी कक्षाओं में पढ़ने वाले मेरे कुछ बड़े भाई अकसर युवतियों को देखकर यह टिप्पणी कर देते थे- यार माल टंच है। हालांकि ऐसा मौका मेरे सामने कभी नहीं आया कि किसी युवती ने अपने ऊपर की गई टिप्पणी को सुना हो और टिप्पणीकार का सैंडिल स्वागत किया हो। हां कई बार यह जरूर लगा कि बड़े भाइयों की टिप्पणी को सुनने के बावजूद युवती ने उसे अनसुना कर दिया। खैर मैंने एक दिन एमजीएस में पढ़ने वाले अपने गांव के एक बड़े भ्राता से टंच माल का मतलब पूछा तो वह मेरी अज्ञानता पर हंसने लगे। जो उन्होंने बताया उसका मतलब था कि कसी हुई देहयष्टि वाली युवती टंच माल होती है। तब तक हम २४ साल के २४ कैरेट के ब्राह्मण तो नहीं हुए थे लेकिन सोलह साल के सोलह आने खाटी सुलतानपुरी तो बन ही चुके थे। सो हमने पूछ लिया भइया यह अंग्रेजी का शब्द है या हिंदी का। वह चकरा गए। बोले-यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन पढ़ा एक हिंदी की किताब में ही है। मैंने फिर पूछा कौन सी किताब में तो उन्होंने मुझे झिड़क दिया। मैंने भी कह दिया-ठीक है न बताएं। लेकिन मैं भी घर पहुंचकर भौजी को आपकी टंच माल की जानकारी दे दूंगा। आपको बता दें कि उस समय मेरे कॉलेज में इंटर में पढ़ने वाले अस्सी फीसदी छात्र शादीशुदा थे। इंटर ही क्यों हाईस्कूल में पढ़ने वाले साठ फीसदी छात्र भी शादीशुदा थे। इन्हीं में से एक मैं था। वैसे हमारे गांव के सारे लड़के एमएसवी यानी मधुसूदन विद्यालय इंटर कॉलेज में पढ़ते थे। पर मैं और भइया एमजीएस में थे। एमजीएस यानी महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज। एक जीआईसी था यानी राजकीय इंटर कॉलेज पर मेरे गांव का कोई लड़का उस समय तक इतना बदतर नहीं था कि सरकारी कॉलेज में पढ़े। सुलतानपुर शहर में उस समय तक यही तीन इंटर कॉलेज थे। खैर बात भइया की हो रही थी। भइया का मेरी धमकी पर कोई असर नहीं पड़ा और न ही मैंने भौजी से टंचमाल के बारे में बताया। बताता भी कैसे। कोई थी ही नहीं। वह तो बस जुबानी जमाखर्च करते थे सड़क पर। लेकिन एक दिन मैंने अपने अथक प्रयास से एक ऐसी पुस्तक हासिल कर ली,जिसमें टंच माल के बारे में विस्तार से बताया गया था। पुस्तक के लेखक मस्तराम थे। तब मेरे ज्ञानचक्षु खुले और मैंने जाना कि टंच शब्द के जनक कौन थे और इसका उद्भव कहां से हुआ। अब टंचमाल को लेकर आप दिग्गी राजा की चाहे जितनी आलोचना करें लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि वह अध्ययनशील हैं और मस्तराम को उन्होंने न सिर्फ पढ़ा है बल्कि याद भी रखा है।
मंगलवार, 21 मई 2013
क्या खापें वाकई खलनायक हैं
खापें। खलनायक हैं। पुरातनपंथी हैं। अमानवीय हैं। कुछ ऐसी ही धारणा बन चुकी है। सही या गलत। इसपर विचार करने का न तो किसी के पास समय है और न ही कोई इसकी जहमत उठाना चाहता है। कौन साला ( या साली) एसी से निकल कर खापों को समझने के लिए गांवों में जाए। धूल फांके। पसीने पसीने हो। सो बेहतर है। अपनी अधकचरी जानकारी के आधार पर उनकी बात को खारिज कर दो। उन्हें गरियाओ। और प्रगतिशीलता का सुविधाजनक लिहाफ ओढ़कर सो जाओ।
हर बात पर स्वस्थ बहस का स्वागत करने वाले भी इस पर बहस को तैयार नहीं। दरअसल खापों की बात रखने वालों उनके स्तर के होते ही नहीं। उनकी निगाह में। सच तो यह है कि खाप विरोधी अंग्रेजींदां लोग का मानसिक स्तर ऐसा होता है कि खापों के बारे में उनसे बहस करना हमारी देसज भाषा में चूतियापे का काम है। सो मैं न तो उनसे बहस करना चाहता हूं न ही उनपर अपने विचार थोपना चाहता हूं। मैं तो सिर्फ और सिर्फ उन लोगों से रूबरू हूं जो इस देस की माटी की भावनाओं को महसूसते हैं। प्यार करते हैं और सार्वजनिक रूप से उसका इजहार करते हैं। पिछले एक दशक में खापों पर यह आरोप लगाया गया कि वे ऑनरकिलिंग की समर्थक हैं। हालांकि ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। मैं यह स्वीकार करता हूं कि गांव की बेटी अपनी बेटी। गोती गोती भाई भाई जैसी सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ते हुए विवाह करने वाले जोड़ों की हत्याएं हुईं। यह जघन्य अपराध था। है। लेकिन ऐसा करने के लिए किसी खाप ने फरमान नहीं सुनाया। इस तरह की हर घटना में युवती के परिवार वाले ही संलिप्त पाए गए। फिर इसका दोष खापों को क्यों। क्या इसलिए कि खाप सामाजिक मर्यादाओं की समर्थक हैं।
रेप की घटनाएं बढ़ीं तो खापों की तरफ से बात उठी कि कन्या का विवाह 15 की उम्र में कर दिया जाना चाहिए। हंगामा हो गया। खापों की तुलना मोहम्मद तुगलक से की जाने लगीं। बगैर यह सोचे कि इसके पीछे खापों की सोच क्या है। बगैर यह समझे कि पुलिस रिकार्ड मे दर्ज होने वाले रेप केसों में 90 फीसदी रेप के केस होते ही नहीं। सिर्फ दस फीसदी केस वाकई रेप के होते हैं जिनमें पीड़ित कोई बच्ची होती है या कोई अकेली महिला। यह भी रेखांकित कर लें कि अबोध बच्चियों के साथ दरिंदगी करने वाला तो अकेला वहशी हो सकता है लेकिन वयस्क महिला के साथ एक व्यक्ति अकेले रेप करे यह नामुमिकन ही है। हां हथियार का भय दिखाकर करता है तो और बात है। इसीलिए ज्यादातर घटनाएं गैंगरेप की होती हैं। तो साहिबान। कद्रदान। यह बात 24 कैरेट सोने की तरह सत्य है कि 15 होते होते किशोरियों में किशोरों के शरीर में हारमोंस के कारण जो त्वरित परिवर्तन आते हैं, उनके ताप से उनकी देह तपने लगती है। टीवी- अखबार वाले कामसूत्र से मूड्स बना कर इसे और भड़का देते हैं तो जापानी तेल लगाने की सलाह देकर अनवांटेड का सहारा लेकर मोस्टवांडेड बना देते हैं। नतीजा। छोटी सी लव स्टोरी शुरू होती है और फिर एक दिन दरोगा जी थाने में रेप,अपहरण और जान से मारने की धमकी देने जैसी आईपीसी की धाराओं को परिभाषित करते हुए प्रेमी का इंटरव्यू ले रहे होते हैं।
तो, अगर इस स्थित से बचने के लिए उसी उम्र में शादी का मशविरा खापें अगर देती हैं, जिस उम्र में देह को देह की सर्वाधिक जरूरत होती है तो क्या बुरा है। ज्यादा नहीं दो दशक पहले तक ऐसा ही होता भी था। गांवों में अब भी होता है। शहरों में नहीं। क्योंकि यहां अभिभावकों को बच्चों की शारीरिक मानसिक जरूरतों से ज्यादा उनके करियर की चिंता होती है। दरअसल वे खुद जिंदगी जी नहीं रहे होते बल्कि ढो रहे होते हैं सो उन्हें भी लगता है कि बच्चा जिंदगी ढोने लायक बन जाए। और इस लायक बनने में बच्चे बच्चे नहीं रह जाते, सीधे बूढ़े हो जाते हैं। मेरा सवाल है कि क्या शादी करियर की राह में रोड़ा है। बच्चा शादी के बाद क्यों नहीं पढ़ सकता। बच्ची ससुराल में जाकर अपने सपनों को पंख क्यों नहीं लगा सकती। दोनों संयुक्त रूप से एक साथ रहते हुए। खाते हुए। खेलते हुए। अपने फ्यूचर की प्लानिंग क्यों नहीं कर सकते। कर सकते हैं। करते भी हैं। सफल भी होते हैं। लेकिन वही जिनके मां बाप प्रगतिशीलों की निगाह में पुरातनपंथी होते हैं। दरअसल कथित प्रगतिशील भीतर से खुद इस भावना से ग्रस्त होते हैं कि उनकी बेटी को ससुराल में अवसर नहीं मिलेंगे। क्योंकि अपनी बहू को वे अवसर देना नहीं चाहते। उनकी सोच इतनी संकीर्ण होती है, वे मानते हैं कि बहू आकर बेटे का ध्यान भंग कर देगी। हुजूरे आला बहू आकर बेटे का ध्यान केंद्रित कर देगी। अन्यथा बेटे का ध्यान तो एक नहीं कई कई गर्लफ्रेंड में पहले से ही बंट रहा होता है।
अब अंतिम बात। अगर किसी युवक युवती का विवाह 20 की उम्र में होता है और वे 23-24 में पिता-मां बन जाते हैं तो 40-45 तक होते होते वे दादा दादी बन जाएंगे। खुदा न करे उनके बेटे के साथ कोई अनहोनी हो जाए। लेकिन होती भी है तो दादा दादी उसे पाल पोस कर बड़ा ही नहीं कर देंगे बल्कि मां बाप की कमी भी नहीं महसूस होने देंगे। लेकिन जब आप शादी ही 35 पार होकर करेंगे तो रिटायरमेंट तक उनकी ही चिंता में लगे रहेंगे। अपनी जिंदगी जी ही नहीं पाएंगे। पहले अपने करियर की चिंता फिर बच्चों के। और कहीं आप हादसे का शिकार हो गए तो बच्चे का भविष्य क्या होगा। क्योंकि भारतीय संस्कारों वाली मां या पिता अकेला भी संभाल लेगा पर प्रगतिशील मां या पिता तो सेकेंडशादी डॉटकॉम पर सर्च मारकर जिंदगी को फिर से ढोना शुरू कर देगा। बच्चा क्या करेगा। माली हालत के मुताबिक या तो होस्टल में रहेगा या ढाबे पर प्लेट धोएगा। सो भइया जी खाप के मशविरे पर इस नजरिए से भी सोचें।
सोमवार, 29 अप्रैल 2013
कुंडा के डीएसपी हत्याकांड का सच
कुंडा के डीएसपी हत्याकांड में राजाभइया को सीबीआई क्लीन चिट दे चुकी है। देनी ही थी क्योंकि डीएसपी को मारने वाले प्रधान नन्हे यादव का बेटा है और यह बात साबित हो चुकी है। अब सवाल उठता है कि डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद ने राजा भइया के खिलाफ जो तहरीर दी वह क्यों दी। वह तहरीर परवीन आजाद ने लिखी भी नहीं थी। बल्कि कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा ने वह तहरीर लिखी थी और उसपर परवीन के मुताबिक उन्होंने केवल दस्तखत किए थे।
लखनऊ से प्रकाशित कैनविज टाइम्स के 29 अप्रैल के अंक में संजीदा पत्रकार प्रभात रंजन दीन की रिपोर्ट छपी है। वह रिपोर्ट साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं-
कुंडा हत्याकांड का सबसे बड़ा रहस्य खुल गया है कि सीओ जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद की संदेहास्पद तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कौन था। मरहूम सीओ की पत्नी ने सीबीआई के समक्ष यह स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने बिना देखे तहरीर पर हस्ताक्षर कर दिए थे। सीओ की पत्नी की तहरीर में ही यह बताया गया था कि सीओ की हत्या राजा भैया ने कराई थी और तभी इतना बावेला मचा कि मामले की जांच सीबीआई से करानी पड़ी। लेकिन सीबीआई ने उस तहरीर को अपनी जांच में प्रामाणिक नहीं पाया। अब तो सीओ की पत्नी ने भी सीबीआई को यह बयान दे दिया है कि वे मौके पर नहीं थीं, लिहाजा उन्हें घटना के बारे में सटीक जानकारी नहीं थी। तहरीर किसी और व्यक्ति ने लिखी थी, उन्होंने केवल उस पर हस्ताक्षर किए थे।
सीबीआई ने यह भी पता लगा लिया है कि संदेहास्पद तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कौन था। तो आप भी सुन लें... परवीन आजाद की तहरीर लिखने वाला व्यक्ति कुंडा का पूर्व सीओ खलीकुर जमा था। खलीकुर जमा ही जियाउल हक के पहले कुंडा में सीओ थे। अभी वे अम्बेडकर नगर के सर्किल अफसर हैं।
कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा ने ऐसी तहरीर क्यों लिखी थी? किसके इशारे पर लिखी थी? क्या वह घटनास्थल पर मौजूद थे? और उन्होंने सीबीआई को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी थी? यह सीबीआई की छानबीन का विषय है। लेकिन यह तय हो गया है कि कुंडा हत्याकांड के पूरे घटनाक्रम को एक खास दिशा में मोडऩे की सुनियोजित साजिश रची गई थी। अब सीबीआई कुंडा के पूर्व सीओ खलीकुर जमा से पूछताछ करने की औपचारिकताओं में लगी हुई है।
'कैनविज टाइम्स'ने आपको पहले भी बताया था कि कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या के बहाने उत्तर प्रदेश सरकार को साम्प्रदायिकता के आधार पर अस्थिर करने की योजना थी। सीओ की विधवा के हस्ताक्षर से जो तहरीर दी गई थी, वह इसी साजिशी इरादे से बुनी गई थी। परवीन अपनी ही तहरीर में लिखे गए तथ्यों को स्पष्ट नहीं कर पाईं। सीबीआई जांच में भी तहरीर में लिखे गए तथ्यों की कोई प्रामाणिकता नहीं पाई गई। अब सीबीआई की जांच का विषय यह भी है कि सीओ हत्याकांड के बहाने कौन शख्स अखिलेश यादव की सरकार को हिलाने की साजिश में लगा था और उसके साथ अन्य कौन लोग तिकड़म में शामिल थे?
परवीन आजाद की तहरीर में लिखा गया था कि सीओ जियाउल हक की हत्या राजा भैया के इशारे पर उनके लोगों ने की। दो मार्च की शाम को प्रधान की हत्या के बाद बलीपुर पहुंचे सीओ को गुलशन यादव, हरिओम शंकर श्रीवास्तव, रोहित सिंह और गुड्डू सिंह ने राजा भैया के इशारे पर लाठी-डंडे व सरिया से पीटा। जब वह गिर गए तो गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। राजा भैया के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में यही तहरीर आधार बनी। तहरीर के जरिए परवीन आजाद ने कहा था कि उनके पति को तीन गोलियां लगी थीं, उन्होंने खुद देखा था कि उनके पति के पैर में दो गोलियां और एक गोली सीने में लगी थी। यह बात सफेद झूठ पाई गई। क्योंकि सीओ को एक ही गोली लगी थी। सीबीआई की जांच में यह आधिकारिक तौर पर पुष्ट हो गया सीओ जियाउल हक की हत्या प्रधान नन्हे यादव के बेटे योगेंद्र यादव उर्फ बबलू ने की थी। सीबीआई ने वह राइफल पहले ही बरामद कर ली थी जिससे सीओ को गोली मारी गई थी। बाद में वह गोली भी बरामद कर ली गई, जिसे योगेंद्र ने छिपा कर रख दिया था। सीबीआई ने उस साजिश का भी पर्दाफाश कर दिया जिसके तहत योगेंद्र को नाबालिग साबित करने का कुचक्र रचा गया था। मतदाता सूची में नाम पाए जाने के बाद सीबीआई ने उसका वोटर आईडी कार्ड भी बरामद कर लिया। बाद में स्कूल के प्राचार्य ने भी किशोर न्यायालय को योगेंद्र की उम्र बताई और उसके बालिग होने की आधिकारिक पुष्टि की।
कुंडा हत्याकांड जितनी गुत्थियां लिए नहीं था उससे अधिक गुत्थियां हत्याकांड के बाद की साजिशों में उलझी हैं। लेकिन उसके सिरे भी अब साफ-साफ नजर आने लगे हैं। हत्याकांड के खुलासे के साथ-साथ साजिश-कांड का खुलासा भी उतना ही जरूरी हो गया है, क्योंकि ऐसे तत्वों का चेहरा सामने आना ही चाहिए जो किसी भी घटना में चौकड़ी जमा कर धर्म, जाति और राजनीति की गंदगी फेंटने का काम शुरू कर देते हैं। इसमें नेता, पत्रकार, पुलिस और कानूनदां सब शामिल हैं। आपको याद ही होगा कि सीओ जियाउल हक की हत्या के बाद प्रदेश के कद्दावर मंत्री आजम खान ने यह बयान जारी किया था कि इस घटना में जो कोई भी दोषी होगा, उसे जरूर पकड़ा जाएगा। प्रदेश के लोगों को भी यही उम्मीद है कि सीबीआई की जांच से कुंडा हत्याकांड और उस हत्याकांड के समानान्तर चले षडयंत्र-कांड के दोषियों को जरूर पकड़ा जाएगा।
चलते-चलते एक और रोचक जानकारी आपको दे दें। कुंडा हत्याकांड के सिलसिले में सीबीआई पुणे-लिंक तलाश रही है। कौन हैं वे लोग जो लखनऊ की जेल में बंद लोगों से पुणे से जानकारियां ले रहे हैं। कुंडा हत्याकांड में जेल में बंद कुछ लोग पुणे के कुछ लोगों से मोबाइल फोन से बातें करते पकड़े गए हैं। सीबीआई अब पुणे-लिंक की छानबीन कर रही है। सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि हत्याकांड में पकड़े गए गुड्डू और उसके भाई राजीव पुणे के कुछ लोगों से बातें करते पाए गए हैं। अपने सम्बोधन में ये 'क्राइम की जय'कहते हैं, फिर इनकी बातें आगे बढ़ती है। सीबीआई को सर्विलांस में यह पता चला है कि पुणे के जिन लोगों से गुड्डू और राजीव की बातें हो रही थीं, वे कौशाम्बी के रहने वाले हैं। वे पुणे में क्या करते हैं और उनकी बातचीत का कुंडा हत्याकांड से कोई अंतरसम्बन्ध है कि नहीं इसकी छानबीन की जा रही है।
शनिवार, 27 अप्रैल 2013
पहले प्यार के मायने
पहला प्यार क्या होता है। एक पुराना गाना है-लेके पहला पहला प्यार। भर के आंखों में खुमार। जादूनगरी से आया है कोई जादूगर। मतलब पहला प्यार वह होता जब पहली बार कोई पुरुष या स्त्री एक दूसरे के प्रति इतना आकर्षित होते हैं कि उसकी देह को ब्रेल लिपि में पढ़ने की इच्छा करने लगते हैं। मुझे लगता यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। स्त्री के रूप में हमारा पहला प्यार हमारी मां होती है। जो हमें देखे बगैर जब हम गर्भ में होते हैं हमसे असीम प्रेम करने लगती है। उठते बैठते हर समय ध्यान रखती है कि गर्भस्थ शिशु को किसी तरह का कष्ट न हो। पुरुष के रूप में हमारा पहला प्यार पिता होता है। मां की तरह वह भी बगैर देखे ही हमें प्यार करने लगता है। हमारे लिए प्यारा सा नाम सोचने लगता है। दोनों यह नहीं जानते कि संतान लड़की होगा या लड़का, इसलिए दोनों तरह के नाम सोचते हैं। दोनों अपने बच्चे को वह बनाना चाहते हैं जो वह खुद नहीं बन पाए। दोनों अपने बच्चों को वह सब देना चाहते हैं, जो उन्हें बचपन में नहीं मिला। तात्पर्य यह कि हमारा पहला प्यार हमारे माता पिता होते हैं। उसी तरह हम जिस गांव में जिस शहर में पैदा होते हैं। वह भी हमारा पहला प्यार होता है। आदमी मरते दम तक न मां-बाप को भूल पाता है न अपने बचपन के शहर को। कभी कभी जब हम अकेले होते हैं, परेशानियों से घिरे होते हैं तो हमें मां बाप की याद बेहद सताती है। इसी तरह कुछ खास मौके पर अपने गांव-शहर की याद भी कुछ उसी तरह का जुल्म ढाती है। जब जब गर्मी की छुट्टियां आती हैं। बच्चे घर जाते हैं। मुझे सुल्तानपुर याद आने लगता है। जी चाहता है। उड़कर पहुंच जाऊं। दरअसल मेरी दिक्कत यह है कि सुलतानपुर मेरे बचपन का प्यार और यार नहीं है बल्कि जवानी का भी है। मैंने अपना गृहनगर 35 का हो जाने के बाद छोड़ा। इसलिए यह भी दिक्कत है कि अब किसी और से दिल भी नहीं लगा पाता हूं।
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013
गलती भाजपा की
चीन भारत की सीमा में घुसा आ रहा है। और कांग्रेसी चपु हैं। विदेश मंत्री ऊंघ रहे हैं। ऐसा क्यों। मैंने एक कांग्रेसी से पूछा तो उसने जोरदार जवाब दिया। बोला, हम चाहते हैं कि भारत पर चीन कब्जा कर ले। क्योंकि फिर हम संयुक्त राष्ट्र में गर्व से कह सकेंगे कि हम वीटो पावर वाले मुल्क हैं। इसका एक फायदा और होगा जैसे आज इतिहास में पढ़ाया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू राजा था। वैसे ही पढ़ाया जाएगा कांग्रेस आजाद भारत की आखिरी सत्तारूढ़ पार्टी थी। रही बात गुलामी की तो वह तो हम हजारों साल से करते रहे हैं। इसके लिए कांग्रेस को दोष देने वालों को इतिहासकार जवाब दे देंगे कि जब मुस्लिम आए तब तो कांग्रेस नहीं थी। जब अंग्रेज आए तब तो कांग्रेस नहीं थी। इसलिए इसका दोष कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता। इसके लिए दोषी शायद भाजपाई रहे हों जिन्होंने बेवजह हल्ला मचाया और कांग्रेस की वीटो पावर वाला मुल्क बनने की नीति में रोड़े अटकाए
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