मंगलवार, 16 सितंबर 2014
ताकि मैं फिर न रोऊं
दो खबरों ने आज बहुत दुखी किया। दोनों आत्महत्या की। गुजरात में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे ने तो पंजाब में एक छात्रा ने जान दे दी। दोनों ही घटनाओं में सुसाइड नोट मिला है। बच्चे ने जहां अपने शारीरिक शिक्षक के उत्पीड़न का जिक्र करते हुए लिखा.. ‘पापा, मेरी आखिरी इच्छा है कि आप पीटी वाले अर्जुन सर के गाल पर 10-20 थप्पड़ मारना’। इतना ही नहीं, बच्चे ने जिस पेन से सुसाइड नोट लिखा, उसी पेन से अपने हाथ पर टीचर का नाम (अर्जुन) भी लिख रखा था। छात्रा ने लिखा है- मुझे माफ करना पिताजी। आपने मेरी फीस देने के लिए घर की कनक (गेहूं) बेची है। मैं मरने जा रही हूं। मैं आप पर बोझ नहीं बनना चाहती।
इन दोनों खबरों को पढ़ने के बाद बहुत देर तक रोता रहा। सोचता रहा। ये सिलसिला कब रुकेगा। कैसे रुकेगा।
रुक सकता है। एक बात जो मैं अभिभावकों से कहना चाहता हूं।
सूरत शहर में रहने वाले कक्षा आठ के छात्र ने अपनी जान इस वजह से दे दी क्योंकि उसकी शारीरिक शिक्षक उसकी अनायास पिटाई करता था। सूरत के इस बच्चे की नजर में भले ही शारीरिक शिक्षक की पिटाई अनायास रही हो लेकिन मेरा मानना है कि शिक्षक जो भी करता था सायास करता था। शारीरिक शिक्षा ऐसा विषय नहीं है जिसमें होमवर्क करना पड़ता हो कुछ याद करना पड़ता हो। शिक्षक बच्चे से कुछ और चाहता रहा होगा। बच्चा तो बेचारा बच्चा ठहरा। जब अति हो गई तो उसने खुद को खत्म करने के लिए फैसला कर लिया। उस शिक्षक को फांसी होनी चाहिए। इससे कम कोई सजा नहीं। इस दुखद घटना से उन अभिभावकों को भी सचेत होना पड़ेगा, जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं। ध्यान दें कि आज स्कूल गुरुकुल नहीं है और उनके शिक्षक ऋषि नहीं हैं। निजी स्कूलों के ज्यादातर शिक्षक -शिक्षिकाएं वे युवक और युवतियां जिनका बौद्धिक स्तर ऐसा नहीं रहा कि पढ़लिख कर कुछ बन सकें। सो बेरोजगारी दूर करने के लिए निजी स्कूलों में नौकरी कर ली। शिक्षिकाओं को प्रबंधन के लोग शोषण करते हैं तो शिक्षक बच्चियों का, बच्चों का। ऐसी घटनाओं के समाचार रोज छपते हैं। दुखद तो यह है कि इस तरह के समाचारों को पढ़कर भी हम सबक नहीं लेते। बच्चा स्कूल जाने लगे तो उससे रोज बात करें। खासतौर से स्कूल के माहौल पर। उसके शिक्षक-शिक्षिकाओं के बारे में। उनके आचरण के बारे में। इतना हीं नहीं। अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तोंदारों के व्यवहार और आचरण के बारे में भी उससे चर्चा करें। पूछें। कौन उसे अच्छा लगता है। कौन खराब है। अच्छा लगता है तो क्यों। उसे गुड टच बैड टच यानी स्नेहिल स्पर्श और कुटिल स्पर्श के अंतर के बारे में बताएं। निस्संकोच और बेझिझक होकर। अगर उस बच्चे के साथ अभिभावकों ने संवादहीनता न बरती होती तो मासूम जान देने का फैसला न लेता। और मुझे रोना न पड़ता।
अब एक बात बच्चियों से
डाइट में ईटीटी का कोर्स कर रही जालंधर में रहने वाली जिस बेटी ने जान दी, उससे कहना चाहता हूं। उसके जरिए हर बेटी से कहना चाहता हूं। तुमने मां बाप की मजबूरी देख खुद को खत्म कर लिया। क्यों। पढ़ने के बाद नौकरी मिलती। नहीं मिलती। तुमने खुद को बोझ क्यों समझा। तुम्हें तो सहारा समझना बनना चाहिए थे। बहुत सी बेटियां ट्यूशन कर मां बाप की मदद करती हैं। तुम भी वैसा ही कुछ सोचती। तुमने सिर्फ इसलिए जान दे दी कि मां ने घर में रखा वह गेहूं बेच दिया जो सरकार गरीब परिवारों को देती है। अब खांएगे क्या। बाप मजदूरी करता है। मजबूर है। तो तुम क्यों मजबूर हो गई। नहीं तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। तुम्हें संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना चाहिए था। पलायन का नहीं। मेरी बच्ची तुमने बहुत गलत किया। पर मेरी बच्चियों आप कभी ऐसा न सोचना। ताकि मैं फिर कभी न रोऊं।
बुधवार, 16 अप्रैल 2014
प्रियंका ने किसी के कहने पर वरुण पर बोला हमला
प्रियंका गांधी और वरुण गांधी में बीते दिनों जो जुबानी जंग हुई,उसकी शुरुआत बेशक प्रियंका ने की, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें (प्रियंका को) किसी ने मजबूर किया था। वह शख्स कौन है जिनसे सोनिया परिवार डरता है। हालांकि यह डर भी सोनिया परिवार की प्रतिष्ठा से ही जुड़ा हुआ है। परिवार को डर है कि उस शख्स के विरोध की वजह से राहुल गांधी कहीं चुनाव हार न जाएं।
कौन हैं वह
वह शख्स हैं अमेठी के मानद राजा और अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस की तरफ से असम में राज्यसभा भेजे गए डॉ.संजय सिंह। कांग्रेस ने अमेठी से संभावित हार के खतरे को देखते हुए ही राजा साहब को असम से राज्यसभा भेजा। जबकि वह सुल्तानपुर से कांग्रेस के टिकट पर पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे और इस बार भी उन्हें टिकट मिलना ही था। लेकिन राजा साहब यह भांप गए कि अगर सुल्तानपुर से भाजपा के टिकट पर वरुण गांधी लड़ेंगे तो उनकी हार सुनिश्चत है। सो उन्होंने अपने समर्थकों की अमेठी में एक मीटिंग बुलाई। कांग्रेस की कमियां गिनाईं। अपने विश्वस्त सूत्रों को बताया कि वह राहुल के खिलाफ अमेठी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। सबने हामी भर दी। राजा साहब की मीटिंग की चर्चा अखबारों में हुआ। वह भाजपा के टिकट पर राहुल को चुनौती देंगे। साथ में यह भी कि भाजपा ने उन्हें टिकट देने के लिए भी हामी भर दी है, पर राजा साहब चाहते हैं कि हारने पर उन्हें भाजपा राज्यसभा भेजे। सोनिया परिवार तक यह खबर पहुंची तो परिवार भयाक्रांत हो गया। कहीं राजा साहब जीत गए तो राहुल का सियासी करियर ही खत्म हो जाएगा। परिवार का डर भी लाजिमी था क्योंकि राजा साहब 98 के लोकसभा चुनाव में परिवार के खासमखास कैप्टन सतीश शर्मा को अमेठी से मात दे चुके थे। 99 में सोनिया से हारने के बाद भी काफी दिनों तक भाजपा में रहे फिर कांग्रेस में चले गए। पिछले लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर से टिकट मांगा। बीते कई चुनावों से सुल्तानपुर सीट पर चौथे नंबर पर आ रही कांग्रेस के पास कोई गंभीर दावेदार भी नहीं था। हालांकि कांग्रेस नेताओं के एक बड़े वर्ग ने इसका विरोध किया। लेकिन उनके पुराने कांग्रेसी मित्रों ने परिवार से यह कहकर टिकट दिला दिया कि सुल्तानपुर की सीट तो वैसे ही अपने पास नहीं आनी है। सो शहीद होने के लिए राजा साहब कौन बुरे हैं। और अगर किसी तरह जीत भी गए तो कांग्रेस के खाते में एक सीट बढ़ ही जाएगी। परिवार ने राजा साहब को टिकट दे दिया। गजब यह हुआ कि राजा साहब जीत गए। बड़े अंतर से जीत गए। परिवार चौक गया। उसे लगा कि सुल्तानपुर अमेठी में वाकई राजा साहब का जनाधार है। आगे अगली पोस्ट में
गुरुवार, 3 अप्रैल 2014
एक नेता होना जरूरी है
शुक्रवार, 28 मार्च 2014
मौत एक गुलमोहर की
रविवार, 27 अक्टूबर 2013
बॉस इज आलवेज राइट
दो तीन सप्ताह पहले की बात है मेरे बॉस अपने केबिन से मेरे केबिन में आए। बोले-देखिएगा जो मीडिया दिग्गज आज मोदी को गरिया रहे हैं, मोदी के सत्ता में आने के बाद मोदी की शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर देंगे। हालांकि मेरे बॉस भाजपाई नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस के कुशासन क्षुब्ध जरूर हैं। होना भी चाहिए। और वही क्यों देश की 90 फीसदी आबादी कांग्रेस से क्षुब्ध है। गरीबों को खाने के लिए अनाज नहीं मिल रहा और अमीरों को प्याज नहीं मिल रहा। सोनिया भाभी को (माफ कीजिएगा मैं सुलतानपुर-अमेठी का हूं और जब सन 81 में राजीव भइया वहां चुनाव लड़ने आए तब से वहां के मेरी उम्र के नौजवान उन्हें भाभी कहते हैं। हालांकि यह रिश्ता शुरू संजय भइया और मेनका भाभी से हुआ था ) चाहिए की कुछ प्याज शीला काकी के घर भिजवा देतीं बेचारी चाची को हफ्ते भर प्याज के लिए तरसना पड़ा। खैर सोनिया भाभी ने शीला चाची को प्याज क्यों नहीं भिजवाया यह मेरे सोचने का सबजेक्ट नहीं है। इसलिए इसे रिजेक्ट कर बॉस वाले सबजेक्ट पर आता हूं। आना भी चाहिए। क्योंकि इन्क्रीमेंट तो उन्हीं पर निर्भर है। तो साहेबान मैं सोच रहा था कि बॉस कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे। वेदों में ऐसे ही थोड़े न लिखा है-बॉस इज आलवेज राइट। वैसे भी बॉस अगर राइट न हों तो सहकर्मी राइट टाइम नहीं रहते। अब देखिए न एन राम देश के सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिंदू का संपादक बनाकर लाए थे सिद्धार्थ वरदराजन जी को। प्रधानमंत्री जी के मीडिया सलाहकार थे। इस फैसले में पीएमओ से वरदराजन के रिलेशन का अर्थ सिद्ध था। क्लीयरतः। सिद्धार्थ होते हुए भी वरदराजन की समझ में यह बात क्यों नहीं आई। अगर आई होती तो उनका मन मोहन पर फिदा होने के बजाए उनसे जुटा होकर मोदी को खुदा मान चुका होता। वे दीवारों पर लिखी इस इस इबारत को द हिंदू के हेड होते हुए भी नहीं देख पाए कि राष्ट्रवादी हिंदू देश का अगला हेड है। अगर उन्होंने यह समझ लिया होता तो मोदी की रैली की खबर पहले पन्ने के अपर हाफ में न सही वैली में जरूर लगवा देते। दूसरी तरफ एन राम ऩे इसका अध्ययन कर लिया कि द हिंदू के कल्याण के लिए अब रामभक्त हिंदू से रिलेशन जरूरी है। इसी से अपना अर्थ सिद्ध होता है वरदराजन अब व्यर्थ हैं। सो उन्होंने राइट होते देऱ नहीं लगाई। आखिर बॉस हैं। जो ऑलवेज राइट होता है और उसके विजन को समझने वाले हर व्यक्ति का फ्यूचर ब्राइट होता है अन्यथा मामला टाइट हो जाता है।
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013
पहली शर्त है आपका अच्छा आदमी होना
मैं वैचारिक रूप से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन एकात्म मानववाद से प्रभावित हूं.साथ ही मानवेन्द्र नाथ राय का नवमानवता वाद और डॉ राम मनोहर लोहिया का भारतीय समाजवाद भी, लेकिन मुझे लगता है िक एकात्म मानववाद उनसे ज्यादा श्रेयस्कर है.साम्यवाद ने मुझे कहीं से भी प्रभावित नहीं किया. लेकिन ऐसा नहीं कि वामपंथी भले आदमी नहीं हो सकते या जिन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को नहीं पढ़ा है. या जो उससे प्रभावित नहीं हैं, वे भले आदमी नहीं हो सकते. भले आदमी तो हर विचारधारा में हो सकते हैं. एक उदाहरण. लखनऊ पत्रकारिता की दो महान विभूतियों का कार्यक्षेत्र रहा. एक घनघोर वामपंथी-श्रद्धेय अखिलेश मिश्र. दूसरे घनघोर संघी- आदरणीय वचनेश त्रिपाठी.दोनों एक दूसरे के मित्र थे। वचनेश जी अखिलेश जी से राष्ट्रधर्म के लिए लिखवाते थे। नाना जी देशमुख ने अखिलेश जी से एक बार जनसंघ का घोषणा पत्र बनवाया था. पत्रकारिता का विधिवत शिक्षण मैंने अखिलेश जी से हासिल की. उनके ही श्रीमुख से वचनेश जी की और उनकी मित्रता के बारे में जाना.तमाम किस्से सुने. फिर कुछ ही महीने बाद आदरणीय वीरेश्वर द्विवेदी के सानिध्य में राष्ट्रधर्म में कार्य करने का सौभाग्य मिला और वहीं वचनेश जी से परिचय हुआ. और उनसे बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया.खास तौर से क्रांतिकारियों के बारे में. एक उदाहरण और जब मैं राष्ट्रधर्म में था उसी दौरान ग्वालियर से प्रभात झा एक दिन के लिए लखनऊ आए. तब वह दैनिक स्वदेश में थे और उन्हें अयोध्या आंदोलन की कुछ तस्वीरें चाहिए थीं। उन्होंने फोन कर टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्यरत कार्टूनिस्ट इरफान जी को फोन किया.इरफान भाई अपने बजाज एम 80 लेकर तुरंत उनसे मिलने पहुंच गए. दोनों में गजब की आत्मीयता.प्रभात जी मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे. अभी राज्यसभा सदस्य हैं और इरफान भाई का तो जवाब नहीं.देशवासियों के सबसे पसंदीदा कार्टूनिस्ट हैं. इस बारे में मुझे प्रभात जी (मुझे पत्रकारिता की मुख्य धारा में लाने वाले, वर्तमान में अमर उजाला गोरखपुर के संपादक)का यह कथन याद आता है-अच्छा कलाकार,अच्छा पत्रकार या अच्छा जनसंघी,अच्छा वामपंथी,या कुछ भी अच्छा बनने के लिए पहली शर्त है आपका अच्छा आदमी होना.
बुधवार, 9 अक्टूबर 2013
परशुराम की खुदकुशी
धर्म ने पूछा-जगत गुरू आपके भीतर का परशुराम कहां गया। जगत गुरू बोले- वत्स, परशुराम ने खुदकुशी कर ली। ताकि उसकी औलादों में परशुराम के गुणसूत्र न पनपने पाएं। धर्म ने पूछा-क्या ऐसा हो पाएगा। जगत गुरू कुछ सोचते हुए बोले-मुश्किल है। लेकिन उन्हें ऐसा करना ही होगा। धर्म ने हंसते हुए कहा-आपकी तरह। जगत गुरू गंभीर हो गए-हां वत्स। लेकिन सिर्फ हमारी तरह नहीं। ऐसा युगों से होता आया है। खुद परशुराम को भी अपने भीतर के परशुराम को मारना पड़ा था। धर्म की उत्सुकता बढ़ गई। उसने पूछा-कैसे। जगत गुरू बोले-वत्स परशुराम को ही नहीं धर्म को भी अपने भीतर के धर्म को मारना पड़ेगा। अब धर्म के चौंकने के बारी थी। उसने कहा-आदरणीय बात को जलेबी की तरह घुमा क्यों रहे हैं। सीधे सीधे समझाइए।
जगतगुरू शुरू हो गए
वत्स, देखो द्रोणाचार्य परशुराम के शिष्य थे। परशुराम चाहते थे कि द्रोणाचार्य भी आश्रम में समाज के सभी तबके लोगों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दें। द्रोणाचार्य ने वही किया। लेकिन उन्हें मिला क्या। बेटे अश्वतथामा के लिए दूध तक का अरेंजमेंट नहीं कर पा रहे थे। आटे का घोल पिलाना पड़ता था। वह खुद भूखे सो सकते थे लेकिन औलाद को भूखा नहीं रख सकते थे। यह पीड़ा हर बाप की है। सो उन्होंने अपने भीतर के परशुराम की हत्या कर दी। समाज के प्रभुवर्ग की गुलामी स्वीकार कर ली। उनके बेटे को दूध भात मिलने लगा। यह अलग बात है कि इसकी कीमत देश को एक नायाब धनुर्धर एकलव्य को खोकर चुकानी पड़ी। सीधे सीधे कहें तो यह एक संतान के लिए दूसरी संतान - शिष्य संतान ही होता है- के वध करने जैसा ही था। यानी संतान द्रोह और देश द्रोह दोनों ही।
वत्स, समाज का प्रभुवर्ग ऐसे ही गुरुओं को,योद्धाओं को, विद्वतजनों को चाहता है जो उसके हर अनुचित काम को उचित सिद्ध करने में अपनी ऊर्जा और विद्वता का इस्तेमाल करें, और उनके वर्ग में शामिल हो कर समाज के उस वर्ग के उत्पीड़न और शोषण में हाथ बटाए, जिस वर्ग से वह खुद आते है। सामाजिक सरोकारों वाले परशुराम उसे नहीं चाहिए। अगर कोई बनने की कोशिश भी करेगा तो प्रभुवर्ग ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देगा कि वह खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाए।
धर्म ने कहा- जगत गुरू अब मैटर सीरियस हो गया। कुछ कुछ अपनी खोपड़ी भी चलने लगी है। अब धर्म की आत्महत्या वाली बात पर कुछ लाइट फोकस कर दें।
जगत गुरू बोले-
वत्स, धर्म तो कब का सुसाइड कर चुका है। धर्म तो वह होता था, जिसमें लोक कल्याण निहित हो। लेकिन लोककल्याण से रोटी नहीं मिलती। यह उसने द्रोणाचार्य के हश्र से ही सीख लिया था। अब तो धर्म वही है जिसके पालने से निज हित हो। वकील का धर्म है-हर हाल में अपने लुटेरे, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी क्लाइंट को बचाना। पत्रकार का धर्म है-ऐसी खबरें कतई न छापना जिससे उसके संस्थान का अहित होता हो। नेता का धर्म है-अपनी पार्टी के वोट बैंक को सुरक्षित रखना। भले ही इसके लिए जातीय और मजहबी दंगों में जानें लेनी पड़ें।
धर्म की समझ में बात आ गई शायद। इसीलिए उसने अगला क्वेशचन करने से परहेज किया। जगत गुरू ने आंखों ही आंखों में उससे अगला क्वेशचन करने को कहा। लेकिन उसने चरण स्पर्श करते हुए विदा ले ली।
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