गुरुवार, 3 अप्रैल 2014
एक नेता होना जरूरी है
शुक्रवार, 28 मार्च 2014
मौत एक गुलमोहर की
रविवार, 27 अक्टूबर 2013
बॉस इज आलवेज राइट
दो तीन सप्ताह पहले की बात है मेरे बॉस अपने केबिन से मेरे केबिन में आए। बोले-देखिएगा जो मीडिया दिग्गज आज मोदी को गरिया रहे हैं, मोदी के सत्ता में आने के बाद मोदी की शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर देंगे। हालांकि मेरे बॉस भाजपाई नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस के कुशासन क्षुब्ध जरूर हैं। होना भी चाहिए। और वही क्यों देश की 90 फीसदी आबादी कांग्रेस से क्षुब्ध है। गरीबों को खाने के लिए अनाज नहीं मिल रहा और अमीरों को प्याज नहीं मिल रहा। सोनिया भाभी को (माफ कीजिएगा मैं सुलतानपुर-अमेठी का हूं और जब सन 81 में राजीव भइया वहां चुनाव लड़ने आए तब से वहां के मेरी उम्र के नौजवान उन्हें भाभी कहते हैं। हालांकि यह रिश्ता शुरू संजय भइया और मेनका भाभी से हुआ था ) चाहिए की कुछ प्याज शीला काकी के घर भिजवा देतीं बेचारी चाची को हफ्ते भर प्याज के लिए तरसना पड़ा। खैर सोनिया भाभी ने शीला चाची को प्याज क्यों नहीं भिजवाया यह मेरे सोचने का सबजेक्ट नहीं है। इसलिए इसे रिजेक्ट कर बॉस वाले सबजेक्ट पर आता हूं। आना भी चाहिए। क्योंकि इन्क्रीमेंट तो उन्हीं पर निर्भर है। तो साहेबान मैं सोच रहा था कि बॉस कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे। वेदों में ऐसे ही थोड़े न लिखा है-बॉस इज आलवेज राइट। वैसे भी बॉस अगर राइट न हों तो सहकर्मी राइट टाइम नहीं रहते। अब देखिए न एन राम देश के सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिंदू का संपादक बनाकर लाए थे सिद्धार्थ वरदराजन जी को। प्रधानमंत्री जी के मीडिया सलाहकार थे। इस फैसले में पीएमओ से वरदराजन के रिलेशन का अर्थ सिद्ध था। क्लीयरतः। सिद्धार्थ होते हुए भी वरदराजन की समझ में यह बात क्यों नहीं आई। अगर आई होती तो उनका मन मोहन पर फिदा होने के बजाए उनसे जुटा होकर मोदी को खुदा मान चुका होता। वे दीवारों पर लिखी इस इस इबारत को द हिंदू के हेड होते हुए भी नहीं देख पाए कि राष्ट्रवादी हिंदू देश का अगला हेड है। अगर उन्होंने यह समझ लिया होता तो मोदी की रैली की खबर पहले पन्ने के अपर हाफ में न सही वैली में जरूर लगवा देते। दूसरी तरफ एन राम ऩे इसका अध्ययन कर लिया कि द हिंदू के कल्याण के लिए अब रामभक्त हिंदू से रिलेशन जरूरी है। इसी से अपना अर्थ सिद्ध होता है वरदराजन अब व्यर्थ हैं। सो उन्होंने राइट होते देऱ नहीं लगाई। आखिर बॉस हैं। जो ऑलवेज राइट होता है और उसके विजन को समझने वाले हर व्यक्ति का फ्यूचर ब्राइट होता है अन्यथा मामला टाइट हो जाता है।
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013
पहली शर्त है आपका अच्छा आदमी होना
मैं वैचारिक रूप से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन एकात्म मानववाद से प्रभावित हूं.साथ ही मानवेन्द्र नाथ राय का नवमानवता वाद और डॉ राम मनोहर लोहिया का भारतीय समाजवाद भी, लेकिन मुझे लगता है िक एकात्म मानववाद उनसे ज्यादा श्रेयस्कर है.साम्यवाद ने मुझे कहीं से भी प्रभावित नहीं किया. लेकिन ऐसा नहीं कि वामपंथी भले आदमी नहीं हो सकते या जिन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को नहीं पढ़ा है. या जो उससे प्रभावित नहीं हैं, वे भले आदमी नहीं हो सकते. भले आदमी तो हर विचारधारा में हो सकते हैं. एक उदाहरण. लखनऊ पत्रकारिता की दो महान विभूतियों का कार्यक्षेत्र रहा. एक घनघोर वामपंथी-श्रद्धेय अखिलेश मिश्र. दूसरे घनघोर संघी- आदरणीय वचनेश त्रिपाठी.दोनों एक दूसरे के मित्र थे। वचनेश जी अखिलेश जी से राष्ट्रधर्म के लिए लिखवाते थे। नाना जी देशमुख ने अखिलेश जी से एक बार जनसंघ का घोषणा पत्र बनवाया था. पत्रकारिता का विधिवत शिक्षण मैंने अखिलेश जी से हासिल की. उनके ही श्रीमुख से वचनेश जी की और उनकी मित्रता के बारे में जाना.तमाम किस्से सुने. फिर कुछ ही महीने बाद आदरणीय वीरेश्वर द्विवेदी के सानिध्य में राष्ट्रधर्म में कार्य करने का सौभाग्य मिला और वहीं वचनेश जी से परिचय हुआ. और उनसे बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया.खास तौर से क्रांतिकारियों के बारे में. एक उदाहरण और जब मैं राष्ट्रधर्म में था उसी दौरान ग्वालियर से प्रभात झा एक दिन के लिए लखनऊ आए. तब वह दैनिक स्वदेश में थे और उन्हें अयोध्या आंदोलन की कुछ तस्वीरें चाहिए थीं। उन्होंने फोन कर टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्यरत कार्टूनिस्ट इरफान जी को फोन किया.इरफान भाई अपने बजाज एम 80 लेकर तुरंत उनसे मिलने पहुंच गए. दोनों में गजब की आत्मीयता.प्रभात जी मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे. अभी राज्यसभा सदस्य हैं और इरफान भाई का तो जवाब नहीं.देशवासियों के सबसे पसंदीदा कार्टूनिस्ट हैं. इस बारे में मुझे प्रभात जी (मुझे पत्रकारिता की मुख्य धारा में लाने वाले, वर्तमान में अमर उजाला गोरखपुर के संपादक)का यह कथन याद आता है-अच्छा कलाकार,अच्छा पत्रकार या अच्छा जनसंघी,अच्छा वामपंथी,या कुछ भी अच्छा बनने के लिए पहली शर्त है आपका अच्छा आदमी होना.
बुधवार, 9 अक्टूबर 2013
परशुराम की खुदकुशी
धर्म ने पूछा-जगत गुरू आपके भीतर का परशुराम कहां गया। जगत गुरू बोले- वत्स, परशुराम ने खुदकुशी कर ली। ताकि उसकी औलादों में परशुराम के गुणसूत्र न पनपने पाएं। धर्म ने पूछा-क्या ऐसा हो पाएगा। जगत गुरू कुछ सोचते हुए बोले-मुश्किल है। लेकिन उन्हें ऐसा करना ही होगा। धर्म ने हंसते हुए कहा-आपकी तरह। जगत गुरू गंभीर हो गए-हां वत्स। लेकिन सिर्फ हमारी तरह नहीं। ऐसा युगों से होता आया है। खुद परशुराम को भी अपने भीतर के परशुराम को मारना पड़ा था। धर्म की उत्सुकता बढ़ गई। उसने पूछा-कैसे। जगत गुरू बोले-वत्स परशुराम को ही नहीं धर्म को भी अपने भीतर के धर्म को मारना पड़ेगा। अब धर्म के चौंकने के बारी थी। उसने कहा-आदरणीय बात को जलेबी की तरह घुमा क्यों रहे हैं। सीधे सीधे समझाइए।
जगतगुरू शुरू हो गए
वत्स, देखो द्रोणाचार्य परशुराम के शिष्य थे। परशुराम चाहते थे कि द्रोणाचार्य भी आश्रम में समाज के सभी तबके लोगों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दें। द्रोणाचार्य ने वही किया। लेकिन उन्हें मिला क्या। बेटे अश्वतथामा के लिए दूध तक का अरेंजमेंट नहीं कर पा रहे थे। आटे का घोल पिलाना पड़ता था। वह खुद भूखे सो सकते थे लेकिन औलाद को भूखा नहीं रख सकते थे। यह पीड़ा हर बाप की है। सो उन्होंने अपने भीतर के परशुराम की हत्या कर दी। समाज के प्रभुवर्ग की गुलामी स्वीकार कर ली। उनके बेटे को दूध भात मिलने लगा। यह अलग बात है कि इसकी कीमत देश को एक नायाब धनुर्धर एकलव्य को खोकर चुकानी पड़ी। सीधे सीधे कहें तो यह एक संतान के लिए दूसरी संतान - शिष्य संतान ही होता है- के वध करने जैसा ही था। यानी संतान द्रोह और देश द्रोह दोनों ही।
वत्स, समाज का प्रभुवर्ग ऐसे ही गुरुओं को,योद्धाओं को, विद्वतजनों को चाहता है जो उसके हर अनुचित काम को उचित सिद्ध करने में अपनी ऊर्जा और विद्वता का इस्तेमाल करें, और उनके वर्ग में शामिल हो कर समाज के उस वर्ग के उत्पीड़न और शोषण में हाथ बटाए, जिस वर्ग से वह खुद आते है। सामाजिक सरोकारों वाले परशुराम उसे नहीं चाहिए। अगर कोई बनने की कोशिश भी करेगा तो प्रभुवर्ग ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देगा कि वह खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाए।
धर्म ने कहा- जगत गुरू अब मैटर सीरियस हो गया। कुछ कुछ अपनी खोपड़ी भी चलने लगी है। अब धर्म की आत्महत्या वाली बात पर कुछ लाइट फोकस कर दें।
जगत गुरू बोले-
वत्स, धर्म तो कब का सुसाइड कर चुका है। धर्म तो वह होता था, जिसमें लोक कल्याण निहित हो। लेकिन लोककल्याण से रोटी नहीं मिलती। यह उसने द्रोणाचार्य के हश्र से ही सीख लिया था। अब तो धर्म वही है जिसके पालने से निज हित हो। वकील का धर्म है-हर हाल में अपने लुटेरे, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी क्लाइंट को बचाना। पत्रकार का धर्म है-ऐसी खबरें कतई न छापना जिससे उसके संस्थान का अहित होता हो। नेता का धर्म है-अपनी पार्टी के वोट बैंक को सुरक्षित रखना। भले ही इसके लिए जातीय और मजहबी दंगों में जानें लेनी पड़ें।
धर्म की समझ में बात आ गई शायद। इसीलिए उसने अगला क्वेशचन करने से परहेज किया। जगत गुरू ने आंखों ही आंखों में उससे अगला क्वेशचन करने को कहा। लेकिन उसने चरण स्पर्श करते हुए विदा ले ली।
गुरुवार, 26 सितंबर 2013
इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
विश्व में दो प्रकार के धर्म हैं-एक इंडो वैदिक दूसरे सेमेटिक। इंडो वैदिक धर्म जिसे भारत में सनातन धर्म कहा जाता है उपजे पंथ हैं-शैव, वैष्णव,जैन, बौद्ध, सिख,आदि
सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ हैं,यहूदी, ईसाई, इस्लाम आदि
सबसे पहले इंडो वैदिक धर्म के बारे में
मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। (मनुस्मृति ६.९२)
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं ।
याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम् ।।
(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति )
श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं :
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।।
महाभारत के महान् यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं -
इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान् बन जाता है।
धर्म के इऩ लक्षणों से स्पष्ट है कि समाज के लिए जो कल्याणकारी है वही धर्म है। वास्तव में धर्म प्राचीनकाल में संविधान का पर्यायवाची हुआ करता था। आज जिस प्रकार संविधान का उल्लंघन करने पर व्यक्ति कानून द्वारा दंडित किया जाता है उसी तरह प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था में धर्म विपरीत आचरण करने पर समाज द्वारा दंडित किया जाता था। उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता था। इससे एक बात स्पष्ट है कि धर्म का उपास्य,उपासना पद्धति से कोई संबंध नहीं है। इंडो वैदिक धर्म मानता है कि ईश्वर एक है। लेकिन एकेश्वरवादी होने के बावजूद आप किसी भी रूप में उसकी उपासना कर सकते हैं। शिव के रूप में विष्णु के रूप में हनुमान के रूप में या मां दुर्गा या फिर अन्य देवी देवताओं के रूप में। लेकिन धर्म परायण होने के नाते आप दूसरे के उपास्य की निंदा नहीं कर सकते। गाली नहीं दे सकते। इसीलिए हनुमान भक्त भी शिव मंदिर से गुजरता है तो सिर झुका लेता है। वह मुस्लिम संत साईं बाबा की उपासना करता है। अजमेर शरीफ की भी और वैष्णों देवी की भी। कभी इस बात पर संघर्ष नहीं होता कि तुम्हारा उपास्य गलत है। वह तो चर्च को भी प्रणाम कर लेता है और मस्जिद को भी। इंडो वैदिक धर्म कि विशेषता है कि वह अपने पंथों में और पंथों को जोड़ने से परहेज नहीं करता। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय तो ईसाई हिंदू और मोहम्मदी हिंदू की परिकल्पना भी करते थे।
दूसरी तरफ सेमेटिक धर्म के पंथ भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं। मतलब एकेश्वरवाद दोनों में कॉमन है। संघर्ष का कारण अगला चरण है। सेमेटिक धर्म से उपजे पंथ एकेश्वरवाद के साथ ही एकोपास्यवाद में भरोसा रखता हैं। दूसरे का उपास्य और उपासना पद्धति उन्हें स्वीकार नहीं। उसके प्रति वे असहिष्णु हैं। ईसाई पंथ के रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट पंथों में टकराव, इस्लाम में शिया सुन्नी टकराव इसी का कारण है। और अगर आपको बुरा न लगे तो कह दूं कि विश्व भर में आतंक का कारण भी सेमेटिक धर्म से उपजे पंथों की एकोपास्यवाद की सोच ही है।
दूसरी तरफ इंडोवैदिक धर्म एकेश्वरवादी होते हुए भी बहुउपास्यवादी हैं। इसलिए उनमें टकराव नहीं होता क्योंकि उनका मूल धर्म उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। क्यों उसके लक्षणों में धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ;शामिल हैं। उसका मानना है कि ईश्वर कण कण में है तो शिव जी की मूर्ति में भी है। हनुमान जी की मूर्ति में भी, गुरुद्वारे में है तो मंदिर में भी और चर्च में है तो मस्जिद में भी. इसीलिए इंडो वैदिक परंपरा में शिवा जी पनपते हैं और सेमेटिक परंपरा में औरंगजेब
रविवार, 15 सितंबर 2013
तो एपी सिंह ने गलत क्या कहा
हम भारतीयों में तमाम अच्छाइय़ां हैं. लेकिन दो चीजे ऐसी हैं, जो हमारी तमाम अच्छाइयों पर मेरिट पर भारी पड़ जाती हैं। पहली हम पाखंडी हैं। दूसरी हम स्वार्थी हैं। पाखंड और स्वार्थ हममें कूट कूट कर भरा हुआ है. दिल्ली रेपकेस के दोषियों को फांसी की सजा हुई. नहीं होनी चाहिए थी.उन्होंने रेप किया था. रेप के लिए आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी। जिस हरामजादे ने उसके शरीर में सरिया डालते हुए कहा-ले साली मर और बस से बाहर फेंका फांसी उसे होनी चाहिए थी. जिसे तीन साल की सजा दी गई. क्योंकि उसके स्कूल के कक्षा चार तक रिकॉर्ड के मुताबिक उस दिन तक उसके बालिग होने में तीन महीने बाकी थे। स्कूल का सर्टिफिकेट सही था या नहीं इसके लिए उसकी मेडिकल जांच भी नहीं कराई गई। नवीनतम चिकित्सा तकनीकों से पता चल सकता है कि वह बालिग था या नहीं. लेकिन अदालत ने ऐसा नहीं किया. क्यों. उसे नाबालिग मान लिया. सीधी सी बात है जो व्यक्ति बलात्कार कर सकता हो वीभत्स तरीके से हत्या कर सकता हो. वह नाबालिग कैसे हो सकते है. इस फैसले के खिलाफ कोई हंगामा नहीं हुआ. और तो और अब वह बालिग हो चुका है इसलिए सुधार गृह में भी नहीं रखा जाएगा. उसे घर पर कैद रखा जाएगा. इसपर कोई बहस नहीं हुई. इसके खिलाफ आवाज उठाई डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने। लेकिन जब दो आरोपियों के वकील ने जज के फैसले पर प्रतिक्रिया कि आपने मीडिया और राजनीति के दबाव में फांसी का फैसला दिया है तो हंगामा हो गया. वकील एपी सिंह को सब गालियां देने लगें। बुरा बताने लगे.क्यों. मैं यह नहीं कहता कि यह फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया. लेकिन यह दावे के साथ कहता हूं कि सबसे वीभत्स अपराधी का फैसला राजनीतिक दबाव में लिया गया। आप सोचें. देश का सेनानायक अपनी जन्मतिथि के प्रमाण में हाईस्कूल का सर्टिफिकेट पेश करता है तो उसे अदालत नहीं मानती। एक बलात्कारी और हत्यारे के कक्षा चार की जन्मतिथि मान लेती है। हद है। यह न्याय नहीं पाखंड है। न्याय तो यहां खंड खंड है।
अब अगली बात एपी सिंह ने कहा कि मैं अपनी बेटी को विवाह से पहले रात रात भर घर से बाहर ब्यावफ्रेंड के साथ घूमने की इजाजत नहीं दूंगा। देह संबंध बनाने की इजाजत नहीं दूंगा और ऐसा करेगी तो उसे जिंदा जला दूंगा। उन्होंने जिंदा जलाने की बात गलत कही। क्रोध में कही। यह भी देखा जाना चाहिए. लेकिन सब पिल पड़े उनपर. जो उन्हें गरिया रहे हैं. दरअसल, वे सब पाखंडी हैं. अगर नहीं तो कहें कि मैं अपनी बेटी को विवाह पूर्व देह संबंध बनाने की इजाजत दूंगा. और अगर उसका ब्वायफ्रेंड कन्डोम का इस्तेमाल भूल गया या वह आईपिल समय पर नहीं ले पाई तो उसके बच्चे का नाना बाखुशी बनूंगा। अब तक तो किसी ने ऐसा नहीं कहा.कोई कहेगा भी नहीं.अगर कोई युवक या युवती यह कहता है कि वे सिर्फ दोस्त हैं तो वे झूठ बोलते हैं। दोस्ती का कोई रिश्ता नहीं होता। जब दो पुरुष दोस्त होते हैं तो उनके बीच भाई का रिश्ता होता है। वे एक दूसरे के बच्चों के उम्र के मुताबिक चाचा ताऊ होते हैं। भाई में और भाई रूपी दोस्त में सिर्फ एक फर्क होता है। हम अपने से बड़े भाई के साथ बहुत सारी बातें नहीं सांझा करते हें। लेकिन दोस्त रूपी भाई के साथ हर बात साझा कर लेते हैं। घर की दफ्तर की बिस्तर की। इसलिए दोस्ती का रिश्ते भाई के रिश्ते से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यही बात स्त्रियों में है। वे अपनी सहेली रूपी बहन से हर बात साझा कर लेती हैं, जो बड़ी या छोटी बहन से नहीं कर सकतीं। सो दुनिया में किसी सत्री और पुरुष का रिश्ता दोस्त का नहीं हो सकता। भाई बहन, बाप बेटी, बेटा मां या पति पत्नी/प्रेयसी का ही हो सकता है। सो ब्वायफ्रेंड केवल और केवल प्रेमी होते हैं। जिनके कई होते हैं ब्वाय फ्रेंड या गर्लफ्रेंड होते हैं वे प्रेमी प्रेमिका भी नहीं होते। सिर्फ और सिर्फ विपरीत लिंग के आकर्षण में बिंधे ऐसे युवक युवती होते हैं जो एक दूसरे की देह को ब्रेल लिपि में पढ़ने का आनंद लेने के लिए जुड़े होते हैं। अगर आप कुंवारे/कुंवारी हैं और आप को कोई युवक/युवती पसंद है तो उससे प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन विवाह से पहले देह संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं लेकिन यह तय हो कि विवाह होगा ही। हालांकि बेहतर यही होगा कि विवाह पूर्व इससे बचा जाए। अपने प्रगतिशील मानने वाली कितनी युवतियां शादी के बाद अपने पति से स्वीकार कर सकती हैं कि उनके कई लोगों से देह संबंध रहे हैं। कोई नहीं तब सब पाखंड करती हैं कि आप मेरी जिंदगी में आऩे वाले पहले पुरुष हो या पहली महिला। हां कुछ तथाकथित हाई सोसायटी वाले लोगों की बात दूसरी है। मसलन भाजपा की हेमामालिनी की और वामपंथी शबाना आजमी जैसे इसके कई उदाहरण हैं, जिन्होंने नारी स्वतंत्रता की वकालत करते हुए अपने पतियों की पूर्व पत्नियों के हक पर डाका डाला। स्मृति ईरानी ने तो अपनी सहेली के पति को छीन लिया। अब ऐसे लोग नारी स्वतंत्रता की वकालत करें तो वह पाखंड नहीं तो और क्या है.
एक समय मैं भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हुआ करता था। रेखांकित कर लें कि संघ का स्वयंसेवक अब भी हूं। शाखा पर भले न जाता हूं। इसलिए नहीं जाता कि अखबार की नौकरी में जाने का मौका नहीं मिलता। सुबह जब शाखा लगने का समय होता है तो मेरे सोने जाने का समय होता है और सायं शाखा जाने का समय होता है तो दफ्तर जाने का। अपने दक्षिणपंथी होने को मैं गर्व से स्वीकार करता हूं। हिंदू होने का मुझे अभिमान है। और ब्राह्मण कुल में पैदा होने के कारण समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का बोध भी। लेकिन मैं जब अपने दफ्तर में होता हूं। खबरों पर काम कर रहा होता हूं तो मैं सिर्फ और सिर्फ पत्रकार होता हूं। और खबरों से न्याय हो इसके लिए सचेत रहता हूं। वाममार्गियों सॉरी वामपंथियों की तरह अपने विरोधियों को कमतर दिखाने के लिए उनमें घालमेल नहीं करता। भाजपाई गलत हैं तो उनके खिलाफ भी लिखता हूं और वामपंथी गलत हैं तो उनके खिलाफ भी। मैं आडवाणी को बिलकुल पसंद नहीं करता जिन्होंने 39 की उम्र में अपने से 17 साल छोटी युवती से शादी की. में कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृतपाद डांगे को प्रणाम करता हूं जिन्होंने समवयस्क विधवा से विवाह किया। क्योंकि मैं पाखंडी नहीं हूं। स्वार्थी नहीं हूं। आज आसाराम को गरियाने वाले इंडिया न्यूज के लोग मनु शर्मा को क्यों भूल गए। इसी बहाने उनको भी याद कर लेते जिन्होंने जेसिका लाल की गोली मार कर हत्या कर दी थी। फिर किस तरह उनके पिता ने जो हरियाणा के कांग्रेस के कद्दावर नेता और बड़े उद्योगपति हैं उन्होंने उनको बचाने के लिए गवाहों को खरीदा। अजीत अंजुम जी एपी सिंह को अपने चैनल पर घेर रहे हैं। उनके विरोध में फेसबुक पर लिख रहे हैं। पर उनका ही चैनल है जो फ्रॉड निर्मल बाबा का कार्यक्रम फिर से प्रसारित कर रहा है। पैसे लेकर। मतलब आप नैतिकता की बात करेंगे और पैसे लेकर फ्रॉड का प्रचार करेंगे। आप से अच्छे एपी सिंह हैं जिनमें सच कहने का साहस है। जो बात एपी सिंह ने कही है वह बात देश के हर एक हजार में से 990 पिता सोचता है पर कहेगा नहीं। जो दस फीसदी कहेंगे उनमे भी ज्यादातर वे लोग होंगे जिनकी बेटियां परंपरागत रूप से धंधा करती हैं और देश में ऐसे सैकड़ों गांव हैं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)